कुंवर बेचैन के गीतों में एक अनूठापन है। उन्हें कभी भी गुनगुनाइये, किसी को सुनाइये, उसकी माधुरी खत्म होने वाली नहीं है। कुंवर बेचैन का जन्म उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद जिले के उमरी गांव में 1 जुलाई 1942 को हुआ था। मुरादाबाद से उनका विशेष लगाव था। बेचैन' उनका तख़ल्लुस है असल में उनका नाम डॉ. कुंवर बहादुर सक्सेना है। प्रस्तुत है कुंवर बेचैन साहब के 2 चुनिंदा गीत-
मिलना और बिछुड़ना दोनों जीवन की मजबूरी है।
उतने ही हम पास रहेंगे जितनी हममें दूरी है।
शाखों से फूलों की बिछुड़न
फूलों से पाँखुड़ियों की
आँखों से आँसू की बिछुड़न
होंठों से बाँसुरियों की
तट से नव लहरों की बिछुड़न
पनघट से गागरियों की
सागर से बादल की बिछुड़न
बादल से बीजुरियों की
जंगल-जंगल भटकेगा ही
जिस मृग पर कस्तूरी है।
उतने ही हम पास रहेंगे जितनी हममें दूरी है।
सुबह हुए तो मिले रात-दिन
माना रोज बिछुड़ते हैं
धरती पर आते हैं पंछी
चाहे ऊँचा उड़ते हैं
सीधे-सादे रस्ते भी तो
कहीं-कहीं पर मुड़ते हैं
अगर हृदय में प्यार रहे तो
टूट-टूटकर जुड़ते हैं
हमने देखा है बिछुड़ों को
मिलना बहुत ज़रूरी है।
उतने ही हम पास रहेंगे जितनी हममें दूरी है।
तू इतना प्यार न कर मुझसे
जो ख़ुद से मिलने को तरसूँ!
जो प्यारी लगे सभी को ही
मैं ऐसी कोई बात नहीं
हूँ मरुस्थल की सूखी रेती
मैं मेघ बनूँ औक़ात नहीं
पर मेघ बनूँ तो यह मन है
तेरे घर-आँगन में बरसूँ!
तू इतना प्यार न कर मुझसे
जो ख़ुद से मिलने को तरसूँ!
पानी था, लेकिन दुनिया ने
कह दिया मुझे पत्थर-काया
सबकी नज़रों का काँटा मैं
खिलकर भी फूल न बन पाया
हाँ, अगर कभी मैं फूल बनूँ
तेरी फुलबग़िया में सरसूँ!
तू इतना प्यार न कर मुझसे
जो ख़ुद से मिलने को तरसूँ!
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11 months ago
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