आप अपनी कविता सिर्फ अमर उजाला एप के माध्यम से ही भेज सकते हैं

बेहतर अनुभव के लिए एप का उपयोग करें

विज्ञापन

इंसान भी हैं क्या

                
                                                                                 
                            चले आँखों में तीर लिए जो वो नादान भी है क्या
                                                                                                

किसी के दिल पे राज करे जो वो सुल्तान भी है क्या

जिसे मिलने को मेरा दिल बहुत हैरान रहता है,
उसे मिलकर मेरा ये दिल बहुत हैरान भी है क्या

नही दुश्मन मिलेगा ढूढने पे भी कभी ऐसा,
इसी एक बात पे कातिल अब परेशान भी है क्या

गया वो लौटकर साधू गलत है मांगना सुनकर,
कहीं दो चार बोली दक्षिणा ओ दान भी है क्या

'शुभम' जो ढूढते फिरते हैं फरिश्तों पे फरिश्तों,
जरा पूछो इन्हें खुद भी कहीं इंसान भी है क्या
- हम उम्मीद करते हैं कि यह पाठक की स्वरचित रचना है। अपनी रचना भेजने के लिए यहां क्लिक करें।
एक वर्ष पहले

कमेंट

कमेंट X

😊अति सुंदर 😎बहुत खूब 👌अति उत्तम भाव 👍बहुत बढ़िया.. 🤩लाजवाब 🤩बेहतरीन 🙌क्या खूब कहा 😔बहुत मार्मिक 😀वाह! वाह! क्या बात है! 🤗शानदार 👌गजब 🙏छा गये आप 👏तालियां ✌शाबाश 😍जबरदस्त
विज्ञापन
X
बेहतर अनुभव के लिए
4.3
ब्राउज़र में ही
X
Jobs

सभी नौकरियों के बारे में जानने के लिए अभी डाउनलोड करें अमर उजाला ऐप

Download App Now