सफर हो रात में तो चाँद से आँखें मिला के चल,
सूरज की छाँव में आया तो फिर आँखें झुका के चल
सँभल के चलने वाले सब के सब तो लड़खड़ाये हैं,
सँभल के जो तुम्हे चलना है तो फिर लड़खड़ा के चल
यही चाहत मेरी ना हुस्न को रुस्वा किया जाये,
अदाएँ जब तेरी सुंदर कली तो फिर दिखा के चल
यहाँ सब टूटते तारों से भी माँगेगे कुछ ना कुछ,
कहीं तू चाँद सा रोशन है तो फिर बच बचा के चल
घड़ी में रंज के हँसना कहीं मुमकिन नही लेकिन,
खुशी के वक्त में आँखों में कई आँसू दबा के चल
किये सौदे जो खुशियों के तेरे गम के लिये मैंने,
नही गर मेरे हक में इश्क तो फिर दिल दुखा के चल
'शुभम' अपने कभी बाहों मे जानाँ थाम ले तुमको,
नशे में नींद के तू भी कभी तो लड़खड़ा के चल
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1 month ago
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