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तुम सा

                
                                                                                 
                            हर रंग के पीछे का चेहरा तुम सा लगता है
                                                                                                

मेरे गालों पर लगा हर रंग तुम सा लगता है

हवा में उड़ता गुलाल तुम सा लगता है
उड़ते गुलाल की महक का जाल तुम सा लगता है

पानी की हर बूंद में कोई तुम सा लगता है
ये सच में तुम हो की कोई तुम सा लगता है

गुजिया की मिठास में कुछ तुम सा लगता है
हर स्पर्श के एहसास में कुछ तुम सा लगता है

जो आंखे मूंद लू तो ये हवा तुम सी लगती है
जो आंखे खोल लू तो हर घटा तुम सी लगती है

तुम्हारे आने ना आने का सवाल भी तुम सा लगता है
इस होली का हर खयाल तुम सा लगता है
 
- हमें विश्वास है कि हमारे पाठक स्वरचित रचनाएं ही इस कॉलम के तहत प्रकाशित होने के लिए भेजते हैं। हमारे इस सम्मानित पाठक का भी दावा है कि यह रचना स्वरचित है। आपकी रचनात्मकता को अमर उजाला काव्य देगा नया मुक़ाम, रचना भेजने के लिए यहां क्लिक करे
1 year ago

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