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नसीबों का खेल सारा है

                
                                                                                 
                            नसीबों का खेल सारा है,
                                                                                                

किसी के हिस्से में महल चौबारे आ गए,
कोई गरीब कुली को भी तरसता रह गया,
कोई खाए जहां पकवान भात भात के,
कोई सूखी रोटी को भी ललचाता रहा गया,

किसी के हिस्से में आए हीरे मोती,
कोई काला धागा पहन कर ही मन बहला रह गया,
कोई प्यार में रच बस गया है,
तो कोई झूठ के आगोश में फस गया है,
कोई अपनी ताकत का सही इस्तेमाल कर रहा है,
कोई अपनी ताकत दूसरों पर अजमा रहा है,
कुदरत ने ही यह लीला रचाई है,
रंगमंच की कठपुतलियां सी हालत बनाई है।।

सीमा सूद
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एक वर्ष पहले

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