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मेरी शराब ही उतर गयी

                
                                                                                 
                            मेरी शराब ही उतर गयी
                                                                                                

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एक रोज ख़ुदा से मुलाक़ात हुई
वो भी पिया था, मैं भी पिया था
उसकी मुफलिसी पर ज़्यादा हैरत हुई
जाम टकराया, पूछा आप रहते कहाँ हो
वो बोले तेरे आसपास यहीं कहीं
जो जिस नजरिये से देखे उसे वैसे
कहीं अमीर,कहीं गरीब दिखता हूँ
पियक्कड़ों को बेखुदी में दिखता हूँ
फक्कड़ फकीरों को मन्दिरों मस्ज़िदों में
हलाल करते क़साई को खंजर में दिखता हूं
ग्राहक तलाशती तवायफ की सजावट में हूं
रिश्वत देने-लेने वालों को भी बचाना है
चोर लुटेरे हत्यारे बलात्कारियों को भी,
सभी तो तहेदिल अपनी-अपनी तरह
मुझपे बेहिसाब ऐतबार करते हैं

मेरी शराब ही उतर गयी, जाम रखा, पूछा
तो अच्छे बुरे कर्म, जन्नत जहन्नुम का मतलब
ख़ुदा बोले ऐसा कुछ नहीं, मैं सबके साथ हूँ
जो जैसा माँगे जहाँ बुलाऐ जैसा करे
मेरी ताकत कि मैं अपनी मुठ्ठी में रहता हूं
मेरा फर्क यह कि मैं गद्दारी नहीं करता हूँ
मैं आदमी की तरह धोखा नहीं करता
जो ऐतबार करें, जरूर उनके साथ रहता हूँ।
-श्रीधर
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एक वर्ष पहले

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