मेरा रंग दे बसंती चोला, मेरा रंग दे बसंती चोला... आजादी के इस तराने के साथ जो तस्वीर हमारी आंखों के सामने उभरती है, वह तीन युवाओं की है जो हंसते हुए फांसी की तरफ अपने कदम बढ़ाए चले जा रहे हैं।
लाहौर सेंट्रल जेल में 23 मार्च 1931 को भगत सिंह, राजगुरू और सुखदेव को फांसी दी गई थी। भगत सिंह की पहचान सिर्फ एक देशभक्त क्रांतिकारी तक ही सीमित नहीं है, वो एक आजाद ख्याल व्यक्तिव थे। हर साल 23 मार्च को भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव की शहीदी दिवस मनाया जाता है। इस अवसर पर प्रस्तुत है वह शेर जिसे भगत सिंह प्रायः गुनगुनाते रहते थे-
जबसे सुना है मरने का नाम जिन्दगी है
सर से कफन लपेटे कातिल को ढूँढ़ते हैं।।
4 months ago
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