महाकवि रामधारी सिंह दिनकर के लिखे काव्य-संग्रह 'रश्मिरथी' का एक हिस्सा है 'कृष्ण की चेतावनी', इसे सोशल मीडिया पर अनेक लोगों ने स्वर दिए हैं। यह इस कविता की ही लय और भाषा है कि जिस-जिसने इसे पढ़ा उसे ख़ूब सराहा गया। लोगों को ज़ुबानी यह कविता याद है। रश्मिरथी के अलावा महाकवि ने रेणुका, हुंकार, उर्वशी, कुरुक्षेत्र, परशुराम की प्रतीक्षा जैसे संग्रहों के साथ-साथ गद्य भी ख़ूब लिखा। वे अपनी कविता में एक जगह लिखते हैं कि 'मर्त्य मानव की विजय का तूर्य हूँ मैं, उर्वशी अपने समय का सूर्य हूँ मैं।' यह उनकी लिखी उन कालजयी पंक्तियों में से एक है जिसे लोग किसी मुहावरे की तरह प्रयोग करते हैं। यूं तो कवि 'पुरुरवा' के माध्यम से यह पंक्तियां कह रहे हैं परंतु दिनकर शब्द का अर्थ भी सूर्य ही है। रामधारी सिंह दिनकर वाक़ई साहित्य के सूरज हैं जिसकी रौशनी शब्दों के साथ लोगों के जीवन में रची-बसी है। कितने ही स्थान हैं जहां महाकवि की पंक्तियां संसद से लेकर जन-आंदोलनों तक की आवाज़ बनीं।
जेपी आंदोलन में ख़ूब पढ़ा गया सिंहासन खाली करो कि जनता आती है, सेना को संबोधित कर पीएम पढ़ते हैं कि कलम आज उनकी जय बोल तो महामारी के समय टीकाकरण अभियान पर बात करते हुए वे याद करते हैं कि मानव जब ज़ोर लगाता है, पत्थर पानी बन जाता है। ऐसे अनेकों उदाहरण हैं जहां राष्ट्रकवि की पंक्तियों के साथ जनचेतना को जाग्रत करने का प्रयास किया जाता है। आज के समय में जब राजनीति अवसरवादी हो सब को अपनी विचारदारा के खांचे में बिठाना चाहती है, वहीं दिनकर को किसी एक विचार के साथ जोड़ना असंभव है। वे जनवादी कवि हैं, राष्ट्रवादी भी, गांधीवादी भी और मार्क्सवादी भी हैं। वे एक समय गांधी जी के ख़िलाफ़ लिखते हैं तो उनकी मृत्यु के शोक पर भी लिखते हैं। पंडित नेहरू जो उन्हें राज्यसभा ले गए, उन्हीं के ख़िलाफ़ उन्होंने कई कविताएं उसी संसद में खड़े होकर पढ़ीं। इससे मालूम होता है कि वे एक सच्चे कवि थे जिसे किसी प्रकार का लोभ न था। वे सत्ता के साथ रह कर भी सत्ता के विरुद्ध खड़े हो सकते थे।
एक वाक़या उनसे जुड़ा मशहूर है कि एक बार जब पंडित नेहरू के पांव लड़खड़ाए तो दिनकर ने उन्हें पकड़ लिया। नेहरू के आभार व्यक्त करने पर उन्होंने कहा कि, जब-जब राजनीति लड़खड़ाती है, साहित्य ही उसे संभालता है। वास्तव में, उनकी कथनी-कहनी में अंतर न था। उनका व्यक्तित्व और कृतित्व ही है कि पटना स्टेशन पर उनकी जयंती के दिन उनकी तस्वीर को दर्शाया गया, उनके गांव सिमरिया में स्टेशन की दीवारों पर उनकी लिखी पंक्तियां उकेरी गयी हैं। इसी गांव सिमरिया में उनका जन्म 23 सितम्बर 1908 को हुआ था और 24 अप्रैल 1978 को 65 की आयु में उनका निधन हो गया। 65 की उम्र उनकी देह की थी लेकिन कोई भी साहित्यकार भौतिक सीमाओं के पार भी इस संसार में मौजूद रहता है, अपनी लिखी रचनाओं के माध्यम से। महाकवि रामधारी सिंह दिनकर की भी यह यात्रा अनवरत जारी है।
दिनकर के लिखे सुभाषित से ही उन्हें नमन
मरणोपरान्त जीने की है यदि चाह तुझे,
तो सुन, बतलाता हूँ मैं सीधी राह तुझे,
लिख ऐसी कोई चीज कि दुनिया डोल उठे,
या कर कुछ ऐसा काम, ज़माना बोल उठे।
3 months ago
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