जो मिलते वो तो इतना पूछता मैं
कि तुम हो बेवफ़ा या बेवफ़ा मैं
ये हालत हो गई मरते ही मेरे
कभी दुनिया ही में गोया न था मैं
ख़ुदा जाने वो समझे या न समझे
इशारों में बहुत कुछ कह गया मैं
मुसाफ़िर बन के आख़िर ये खुला राज़
हूँ मंज़िल मैं सफ़र मैं रहनुमा मैं
सर-ए-मंज़िल हमारा क़ाफ़िला है
कहाँ अल्लाह जाने रह गया मैं
सुना है मुझ में ख़ुद मौजूद था वो
ख़बर होती तो ख़ुद को पूजता मैं
वो कहते हैं कि अब बाक़ी रहा क्या
मिटाया तुम ने दिल को दिल में था मैं
ज़माना ढूँढ़ता है मुझ को 'अफ़सर'
ख़ुदा जाने कहाँ खो गया मैं
कमेंट
कमेंट X