जब उड़ोगे तब जानोगे
कि जाने कब से हो तुम
ज़िदगी के पिंजरे में।
चलोगे तब पता चलेगा
कि पैरों में पड़ी हैं
जाने कितनी मजबूरियों की बेड़ी।
जगोगे तब समझोगे
कि अब तक जिसे समझे थे हक़ीक़त
सब सपना था या भ्रम।
पढ़ोगे तो महसूस करोगे
कि कितनी ही आवाज़ें
इतिहास के पन्नों में नहीं हुईं हैं दर्ज़।
उठाओगे सिर तब देखोगे कि
जितनी है धरती है दो कदमों तले
उससे कहीं आगे क्षितिज तक है उसका विस्तार।
साभार: आलोक कुमार मिश्रा की फेसबुक वाल से
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3 months ago
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