ब्लॉक प्रमुख पद के लिए होने वाला चुनाव आगामी विधानसभा चुनाव के लिए एक नया संदेश दिया है। जमुनहा में भाजपा द्वारा पहले दिए गए टिकट बाद में किए गए निरस्तीकरण को लेकर जातिगत द्वेष बढ़ा है। देखा जाए तो जिले में हुए सभी पांचों विकास खंडों में निर्विरोध निर्वाचन के बाद मतदाताओं में एक लंबी खाई खुद गई है। जिसका खामियाजा आगामी विधानसभा चुनाव में भाजपा को भुगतना पड़ सकता है।
ब्लॉक प्रमुख पद पर हुए चुनाव में जिले के पांचों विकास खंड में भाजपा द्वारा घोषित उम्मीदवार निर्विरोध निर्वाचित हो चुके हैं। इस निर्विरोध निर्वाचन के बाद भले ही जिला इकाई इसको अपनी उपलब्धि बता रहा है। लेकिन इस चुनाव ने मतदाताओं के बीच भाजपा का जातीय समीकरण हिला कर रख दिया है। इसका सबसे ज्यादा नुकसान भाजपा को श्रावस्ती में आगामी विधानसभा चुनाव में भुगतना पड़ सकता है। इसका कारण है भाजपा द्वारा श्रावस्ती विधानसभा के जमुनहा विकास खंड में सबसे पहले शिवपाल वर्मा को अपना उम्मीदवार घोषित किया था।
इस घोषणा के 12 घंटे के अंदर ही उनकी उम्मीदवारी समाप्त करके नया प्रत्याशी घोषित कर दिया गया। इस उम्मीदवारी के साथ ही क्षेत्र में अभी तक भाजपा के मूल वोटर के रूप में चिह्नित कुर्मी समाज के लोगों ने अपना विरोध दर्ज कराया, लेकिन सत्ता की हनक के आगे उनकी आवाज नक्कार खाने की तूती साबित हुई। यह आवाज भले ही आज सत्ता की हनक के आगे गुम हो गई हो। लेकिन आंतरिक रूप से सुलग रहे विरोध का खामियाजा भाजपा को विधानसभा चुनाव में भुगतना पड़ सकता है।
यदि क्षेत्र के जानकारों की माने तो श्रावस्ती विधानसभा क्षेत्र में कुर्मी समाज का प्रतिनिधित्व लगभग सात प्रतिशत के करीब है। जबकि भाजपा का टिकट पाकर ब्लॉक प्रमुख बने व्यक्ति के समाज का प्रतिनिधित्व श्रावस्ती विधानसभा क्षेत्र में लगभग 2825 वोटों का है। जो कि कुल वोट में एक प्रतिशत का भी स्थान नहीं रखता है। यही स्थिति गिलौला विकास खंड में भी है। यहां भी उम्मीदवारों के रूप में दो दावेदार धोबी समाज से तो एक उम्मीदवार डोम समाज से था। यदि इस विधानसभा में धोबी समाज की संख्या देखी जाए तो वह करीब साढ़े तीन प्रतिशत के करीब है। जबकि डोम समाज की संख्या एक फीसदी से कम है। ऐसे में इस समाज की अनदेखी निश्चित ही उनके असंतोष का कारण मानी जा रही है।
वहीं इसी विधानसभा क्षेत्र के इकौना ब्लॉक की स्थिति उस समय और भी नाजुक हो जाती है जब वहां निर्दल प्रत्याशियों को भी नामांकन पत्र के लिए सड़क पर उतर कर आंदोलन करना पड़ा। इसके बावजूद उन्हें नामांकन पत्र तक नहीं मिला। ऐसे में यह रोष भले ही आज सत्ता पक्ष के प्रतिनिधि व संगठन के लोगों को न दिख रहा हो लेकिन अंदरखाने की आग का सामना आगामी चुनाव में भाजपा समर्थित विधानसभा प्रत्याशियों को करना पड़ सकता है।
विस्तार
ब्लॉक प्रमुख पद के लिए होने वाला चुनाव आगामी विधानसभा चुनाव के लिए एक नया संदेश दिया है। जमुनहा में भाजपा द्वारा पहले दिए गए टिकट बाद में किए गए निरस्तीकरण को लेकर जातिगत द्वेष बढ़ा है। देखा जाए तो जिले में हुए सभी पांचों विकास खंडों में निर्विरोध निर्वाचन के बाद मतदाताओं में एक लंबी खाई खुद गई है। जिसका खामियाजा आगामी विधानसभा चुनाव में भाजपा को भुगतना पड़ सकता है।
ब्लॉक प्रमुख पद पर हुए चुनाव में जिले के पांचों विकास खंड में भाजपा द्वारा घोषित उम्मीदवार निर्विरोध निर्वाचित हो चुके हैं। इस निर्विरोध निर्वाचन के बाद भले ही जिला इकाई इसको अपनी उपलब्धि बता रहा है। लेकिन इस चुनाव ने मतदाताओं के बीच भाजपा का जातीय समीकरण हिला कर रख दिया है। इसका सबसे ज्यादा नुकसान भाजपा को श्रावस्ती में आगामी विधानसभा चुनाव में भुगतना पड़ सकता है। इसका कारण है भाजपा द्वारा श्रावस्ती विधानसभा के जमुनहा विकास खंड में सबसे पहले शिवपाल वर्मा को अपना उम्मीदवार घोषित किया था।
इस घोषणा के 12 घंटे के अंदर ही उनकी उम्मीदवारी समाप्त करके नया प्रत्याशी घोषित कर दिया गया। इस उम्मीदवारी के साथ ही क्षेत्र में अभी तक भाजपा के मूल वोटर के रूप में चिह्नित कुर्मी समाज के लोगों ने अपना विरोध दर्ज कराया, लेकिन सत्ता की हनक के आगे उनकी आवाज नक्कार खाने की तूती साबित हुई। यह आवाज भले ही आज सत्ता की हनक के आगे गुम हो गई हो। लेकिन आंतरिक रूप से सुलग रहे विरोध का खामियाजा भाजपा को विधानसभा चुनाव में भुगतना पड़ सकता है।
यदि क्षेत्र के जानकारों की माने तो श्रावस्ती विधानसभा क्षेत्र में कुर्मी समाज का प्रतिनिधित्व लगभग सात प्रतिशत के करीब है। जबकि भाजपा का टिकट पाकर ब्लॉक प्रमुख बने व्यक्ति के समाज का प्रतिनिधित्व श्रावस्ती विधानसभा क्षेत्र में लगभग 2825 वोटों का है। जो कि कुल वोट में एक प्रतिशत का भी स्थान नहीं रखता है। यही स्थिति गिलौला विकास खंड में भी है। यहां भी उम्मीदवारों के रूप में दो दावेदार धोबी समाज से तो एक उम्मीदवार डोम समाज से था। यदि इस विधानसभा में धोबी समाज की संख्या देखी जाए तो वह करीब साढ़े तीन प्रतिशत के करीब है। जबकि डोम समाज की संख्या एक फीसदी से कम है। ऐसे में इस समाज की अनदेखी निश्चित ही उनके असंतोष का कारण मानी जा रही है।
वहीं इसी विधानसभा क्षेत्र के इकौना ब्लॉक की स्थिति उस समय और भी नाजुक हो जाती है जब वहां निर्दल प्रत्याशियों को भी नामांकन पत्र के लिए सड़क पर उतर कर आंदोलन करना पड़ा। इसके बावजूद उन्हें नामांकन पत्र तक नहीं मिला। ऐसे में यह रोष भले ही आज सत्ता पक्ष के प्रतिनिधि व संगठन के लोगों को न दिख रहा हो लेकिन अंदरखाने की आग का सामना आगामी चुनाव में भाजपा समर्थित विधानसभा प्रत्याशियों को करना पड़ सकता है।