अभिनेता से राजनेता बनने का सपना देखने वाले दीप सिद्धू को किसान संघर्ष का मंच मिला तो उसे सपने सच होते दिखने लगे लेकिन अब वो न घर का रहा न घाट का। दिल्ली में जहां उस पर 'राष्ट्र विरोधी' होने का ठप्पा लग गया, वहीं पंजाब में किसान विरोधी होने का।
जब किसान आंदोलन शुरू हुआ तो दीप सिद्धू समेत सभी यह कह रहे थे कि वो किसानों के लिए और किसान नेताओं के नेतृत्व में (यूनियनों के बैनर तले) इस आंदोलन में शामिल हैं। एक बारगी तो ऐसा लगने लगा था कि किसान, गायक और अभिनेताओं का ये संगम पंजाब में क्रांति पैदा कर रहा है लेकिन कुछ समय बाद ही दीप सिद्धू ने किसान नेताओं के फैसलों पर सवाल उठाना शुरू कर दिया।
उसने सिंघु बॉर्डर पर अपना खुद का मंच बना लिया और संविधान के संघीय ढांचे पर बोलना शुरू कर दिया। कृषि कानूनों के बारे में बात नहीं करने पर किसान संगठनों ने उसे सिंघु बॉर्डर के मुख्य मंच से बोलने से रोक दिया। उगराहां ग्रुप ने साफ तौर पर घोषणा कर दी कि सिद्धू किसान आंदोलन की दिशा बदल रहा है। सोशल मीडिया पर छाया रहने वाला दीप सिद्धू जरनैल सिंह भिंडरावाले के बारे में भी पोस्ट करता रहा। इस कारण किसान संगठनों ने खुद को उससे दूर कर लिया।
जब किसान संगठनों ने दिल्ली की सीमाओं की ओर बढ़ने का आह्वान किया तो दीप सिद्धू ने लोगों से वापस जाने को कहा। इससे किसान संगठनों और दीप सिद्धू में दरार बढ़ने लगी। 26 जनवरी को ट्रैक्टर मार्च की घोषणा के बाद दीप सिद्धू फिर से सक्रिय हो गया। उसने मार्च के लिए लोगों को जुटाना शुरू कर दिया।
दीप सिद्धू ठीक उस जगह मौजूद था, जहां लोगों ने लालकिले पर झंडे लहराए। उसने उसी जगह अपना एक वीडियो भी बनाया। इसके बाद दिल्ली पुलिस ने उसके खिलाफ राष्ट्रद्रोह का मामला दर्जकर लिया, वहीं किसानों ने दीप सिद्धू को आंदोलन का खलनायक करार दे दिया। दीप सिद्धू के निकटवर्ती लोगों का कहना है कि उसका सपना राजनीति में एक मुकाम पर पहुंचना था।