उत्तर प्रदेश के कुशीनगर जिले के नेबुआ नौरंगिया क्षेत्र के सिद्धपीठ बगही धाम में भी जगन्नाथपुरी की तरह हर वर्ष आषाढ़ मास में भगवान शालीग्राम की पालकी यात्रा निकलती है। पालकी को लोग कंधों पर उठाकर अगल-बगल के गांवों का भ्रमण करते हैं। इस बार भी मंगलवार को पालकी यात्रा निकाली गई। जबकि कोरोना महामारी के बीच साधारण माहौल ही रहा।
ग्राम सभा खानूछपरा, पचफेड़ा व परसिया के मध्य में स्थित सिद्धपीठ बगही धाम क्षेत्र के हजारों लोगों की आस्था का केंद्र है। यहां मंदिर अपनी सैकड़ों वर्ष पुरानी परंपराओं को आज भी जीवंत रखे हुए है। उन्हीं परंपराओं में से एक है भगवान शालीग्राम की पालकी यात्रा।
जिस तरह उड़ीसा में भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा निकलती है उसी तर्ज पर बगही धाम में भी प्रत्येक वर्ष 23 जून को मंदिर से भगवान शालीग्राम की पालकी यात्रा निकाली जाती है। इस दौरान भगवान की मूर्ति को पालकी में सजा कर साधु संत व गांव के लोग कंधों पर उठाते हैं।
यह पालकी मंदिर से निकलकर आसपास के गांवों में ले जाई जाती है। जिस व्यक्ति के दरवाजे पर पालकी रूकती है, उस परिवार व अगल-बगल के लोग पूजन, आरती के बाद प्रसाद ग्रहण करते हैं। पालकी जिस रास्ते से गुजरती है वहां के श्रद्धालु पालकी के साथ हो लेते हैं। गांव का भ्रमण करने के बाद पुनः पालकी मंदिर परिसर पहुंचती है। जहां मंदिर के गर्भ गृह में वैदिक मंत्रोच्चार के बाद भगवान शालीग्राम को सिंहासन पर विराजमान कराया जाता है।
मंदिर के महंत विशंभर दास महाराज ने बताया कि करीब चार सौ वर्ष पहले यहां महंत रहे बद्रीनाथ दास ने जगन्नाथपुरी की रथ यात्रा से लौटने के बाद यह परंपरा शुरू की थी। तब से आज तक हर वर्ष यहां पालकी यात्रा निकाली जाती है।