इस साल अक्तूबर में नए खाद कारखाने के शुभारंभ की तैयारी है। मगर शुरू होने के पहले ही यह आसपास के पांच से दस किलोमीटर के दायरे में सामाजिक-आर्थिक बदलाव का वाहक बनने लगा है। खंडहर में तब्दील हो चुके पुराने कारखाने की जगह नई चमचमाती आधुनिक मशीनें दिखाई पड़ रही हैं। आसमान से बातें कर रहा प्रिलिंग टॉवर अपनी ऊंचाई को लेकर दुनिया के सभी देशों में बने खाद कारखानों से आगे है।
जुलाई 2016 में कारखाने की नींव रखे जाने के साथ ही पांच से 10 किलोमीटर के क्षेत्र में तेजी से विकास महसूस किया जा रहा है। जैसे-जैसे यह निर्माण के आखिरी पड़ाव पर पहुंच रहा है, इलाके में विकास की गति भी तेजी से बढ़ती जा रही है। सड़कें और चौराहे चौड़े होने के साथ ही ऊंची-ऊंची इमारतों का जाल फैल रहा है। इस दायरे में आने वाली जमीन की कीमतों में भी कई गुना बढ़ोत्तरी हुई है। कल तक मानबेला, पोखरभिंडा समेत आसपास के इलाकों की जो जमीन, किसानों के लिए ढेले के बराबर थी आज वह सोना उगल रही है।
मेडिकल कॉलेज रोड और बरगदवां-नकहां से खाद कारखाना की तरफ जाने वाली सड़क पर ठेले-खोंमचे लगाने वाले कई जरूरतमंदों को अपरोक्ष रुप से रोजगार मिलने लगा है। असुरन से लेकर गुलरिहा तक उप नगरीय संस्कृति विकसित हो गई है। यानी शहर के बीच एक नया शहर जहां स्कूल, दफ्तर, बाजार, मल्टीप्लेक्स, होटल, रेस्त्रां, गाड़ियों के शोरूम से लेकर अस्पताल तक हर तरह की सुविधा हो गई है।
जमीन कारोबारियों के लिए लोकेटर बना खाद कारखाना
खाद कारखाने की वजह से आसपास के 10 किलोमीटर तक की जमीन के दाम बढ़ गए हैं। जमीन कारोबारी लोकेटर के तौर पर कारखाने का इस्तेमाल कर रहे हैं। जगह-जगह टंगे होर्डिंग, फ्लैक्स और व्हाट्सएप पर किए जाने वाले विज्ञापनों में कॉलोनाइजर, जमीन कारोबारी इसका उल्लेख कर रहे हैं कि खाद कारखाने से उनकी जमीन या कॉलोनी कितनी दूरी पर है।
नकहा ओवरब्रिज भी कारखाने की देन
नकहा रेलवे क्रांसिंग पर रोजाना घंटो जाम झेल रही 50 हजार से अधिक की आबादी को अब इससे छुटकारा मिल जाएगा। वहां ओवरब्रिज बनाए जाने की योजना है। फंड भी जारी हो गया है। यह ओवरब्रिज भी खाद कारखाने की ही देन है। इसकी मांग करीब डेढ़ दशक से की जा रही है।
कभी पुराने खाद कारखाने के आसपास रात नहीं होती थी, फिर लौटी रौनक
ढाई दशक पहले बंद हुआ गोरखपुर खाद कारखाना करीब दो दशकों तक गोरखपुर की संपन्नता और विकास की निशानी हुआ करता था। कारखाने के आसपास कभी रात नहीं होती थी। 24 घंटे रोशनी से पूरा इलाका जगमगाता था। शिफ्टवार ड्यूटी चलती थी तो बाहर चाय-पानी और पान की दुकानों पर भी हमेशा मजमा लगा रहता था। खाद कारखाने में सीनियर टेक्नीशियन रह चुके कोदई सिंह कहते हैं कि 70-80 के दशक में गोरखपुर एवं आसपास इतनी पगार देने वाला, न तो कोई दफ्तर था न ही कल-कारखाना। अब वहीं रौनक फिर लौटने लगी है। अक्तूबर 2021 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इसका लोकार्पण करेंगे। इसके बाद तो इस इलाके में विकास का पहिया और तेजी से घूमने लगेगा। जल्द ही कारखाने के बगल में सैनिक स्कूल का निर्माण शुरू होगा। इसके अलावा जीडीए, मानबेला एवं उसके आसपास कई नई परियोजनाएं लाने पर मंथन कर रहा है।