थायरॉइड से पीड़ित हैं तो चिंता न करें। मस्त रहें। चिंता से यह बीमारी बढ़ जाती है। इसे रोकने के लिए मैदा, मिठाई से दूरी बना लें। सुबह टहलें। योग करें। साल भर में एक बार जांच कराएं। बढ़ी थायरॉइड दवाओं से ठीक हो जाती है। दवा के कारगर नहीं होने पर सर्जरी होती है। अब तो रोबोटिक सर्जरी आ गई है। ऐसे में गले पर निशान भी नहीं पड़ता है। एसजीपीजीआई के इंडोक्राइनोलॉजी सर्जरी विभागाध्यक्ष प्रो. अमित अग्रवाल का कहना है कि पीजीआई में थायरॉइड के इलाज की सभी सुविधाएं हैं। इसका इलाज नहीं किया गया तो यह साइलेंट किलर भी हो सकता है। पेश है प्रो. अमित से हुई बातचीत के प्रमुख अंश...
थायरॉइड होता क्या है ?
थायरॉइड ग्लैंड गले में सांस नली के ऊपर, वोकल कॉर्ड के दोनों ओर दो भागों में होती है। इसका आकार बटरफ्लाई जैसा होता है। थायरॉइड ग्लैंड थाइरॉक्सिन हार्मोन बनाती है। यह शरीर को एनर्जी, प्रोटीन देने के साथ ही अन्य हार्मोन्स को बैलेंस रखती है। यह मेटाबॉलिज्म को संतुलित करती है। हार्मोन के प्रभावित होने पर ग्लैंड का आकार बढ़ जाता है। इससे अन्य हार्मोन भी प्रभावित होने लगते हैं। जब थायरॉइड ग्रंथि ज्यादा मात्रा में हार्मोन बनाने लगती है तो इसे हाइपरथाइरॉइडिज्म कहते हैं। हाइपोथायरॉइडिज्म में हार्मोन के स्तर में कमी होती है। हाइपोथॉयराइडिज्म में ज्यादा ठंड नहीं बर्दाश्त होगी और हायपरथायरॉइडिज्म में ज्यादा गर्मी नहीं बर्दाश्त होगी।
थायरॉइड होने की वजह क्या है ?
अनियमित जीवनशैली और गलत दवाओं का सेवन इसकी वजह है। कुछ लोगों में ऑटोइम्यून की वजह से भी थायरॉइड रोग होते हैं। कुछ लोगों में यह वंशानुगत होता है। इससे शरीर में बनने वाली एंटीबॉडी थायरॉइड ग्रंथियों को अधिक हार्मोन बनाने के लिए प्रेरित करती है।
इसके लक्षण क्या-क्या होते हैं?
थायरॉइड होने पर मेटाबॉलिज्म प्रभावित होता है। ऐसे में हम जो भी खाते हैं वो पूरी तरह एनर्जी में नहीं बदल पाता और अतिरिक्त वसा के रूप में जमा होता रहता है। इससे वजन बढ़ने लगता है। ऐसी स्थिति में हाथ-पैर में झुंझुनी, थकान, काम में मन न लगना, हृदय गति बढ़ना और कम होना, नाड़ी की दर धीमी होना, सोचने-समझने की क्षमता कमजोर होना, चिड़चिड़ाहट जैसी समस्या होती है। कुछ समय बाद गले में उभार दिखने लगता है। मांसपेशियां कमजोर हो जाती हैं और घुटनों और हाथ या पैर के छोटे जोड़ों में सूजन महसूस होता है। वहीं हाइपरथायरॉइडिज्म में वजन घटने लगता है। जरा सी गर्मी लगने पर बेचैनी होती है। अधिक पसीना होता है। नींद कम प्यास ज्यादा लगती है। आंखों पर सूजन आती है। दिल तेजी से धड़कता है। कब्ज रहता है। महिलाओं के बालों में रूखापन, मासिक धर्म अनियमित हो जाता है। इनफर्टिलिटी की भी समस्या होती है। यह बीमारी 30 से 60 साल की महिलाओं में अधिक होती है।
महिलाओं में किस तरह की परेशानी होती है?
अलग-अलग शोध में साबित हुआ है कि महिलाओं में यह समस्या अधिक होती है। इसकी मूल वजह है कि महिलाओं में ऑटोइम्यून की समस्या ज्यादा होती है। कई बार पीरियड ज्यादा देर तक रहता है। उनमें उलझन होती है। इसकी बड़ी वजह है कम मात्रा में थायरॉक्सिन का स्राव होना। अवसाद होने लगता है। ऐसा लगता है जैसे शरीर के अंदर चींटी काट रही है।