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GPS Spoofing: सरकार ने माना 800 फ्लाइट्स के पीछे थी GPS स्पूफिंग, जानिए कैसे यह तकनीक करती है काम

यूटिलिटी डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली Published by: संकल्प सिंह Updated Tue, 02 Dec 2025 03:05 PM IST
सार

How GPS Spoofing Works: अब केंद्र सरकार ने संसद में यह स्वीकार किया है कि इस घटना के पीछे की वजह जीपीएस स्पूफिंग ही थी। जीपीएस स्पूफिंग का पता चलने के बाद विमानों को सुरक्षित रनवे पर उतारने के लिए वैकल्पिक प्रक्रियाओं को अपनाया गया था। 

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क्या दिल्ली एयरपोर्ट पर हुआ साइबर हमला? - फोटो : Adobe Stock

How GPS Spoofing Works: नवंबर महीने की शुरुआत में दिल्ली के इंदिरा गांधी हवाई अड्डे पर कई उड़ानें प्रभावित हुई थीं। रिपोर्ट्स की मानें तो इस दौरान कुल 800 उड़ानों पर इसका असर पड़ा था। उस समय एटीसी ने बताया था कि ऑटोमैटिक मैसेज स्विचिंग सिस्टम में खराबी के चलते यह दिक्कत सामने आई थी।



इसके बावजूद कई मीडिया रिपोर्ट्स में इस घटना के पीछे की वजह जीपीएस स्पूफिंग बताई जा रही थी। वहीं अब केंद्र सरकार ने संसद में यह स्वीकार किया है कि इस घटना के पीछे की वजह जीपीएस स्पूफिंग ही थी। जीपीएस स्पूफिंग का पता चलने के बाद विमानों को सुरक्षित रनवे पर उतारने के लिए वैकल्पिक प्रक्रियाओं को अपनाया गया था। 

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क्या जीपीएस स्पूफिंग शिकार हुआ दिल्ली एयरपोर्ट? - फोटो : Adobe Stock

कैसे होती है जीपीएस स्पूफिंग 

जीपीएस स्पूफिंग क्या होती है और कैसे की जाती है इसको समझने से पहले आपको अमेरिका के जीपीएस सिस्टम Navstar के बारे में जानना जरूरी है। अमेरिका ने अपना जीपीएस सिस्टम NAVSTAR कुल 31 सैटेलाइट के समूह से बनाया है। ये सैटेलाइट PRN कोड नागरिकों और अमेरिकी सेना दोनों को प्रसारित करते हैं। 

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दुनिया की सबसे छोटी हवाई यात्रा - फोटो : Adobe Stock

सेना के लिए जो कोड भेजे जाते हैं वे एन्क्रिप्टेड होते हैं, वहीं नागरिकों को भेजे जाने वाले कोड एन्क्रिप्टेड नहीं होते हैं। ये सभी के लिए उपलब्ध होते हैं, मोबाइल, कार, ड्रोन, मैपिंग आदि में इनका इस्तेमाल होता है। इस कारण ये साइबर हमलों के प्रति संवेदनशील हैं।

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दुनिया की सबसे छोटी हवाई यात्रा - फोटो : Adobe Stock

उपग्रह की कक्षा सार्वजनिक होती है, इस कारण कोई भी इन्हें देख सकता है कि किस समय कौन सा GPS सैटेलाइट कहां है? GPS उपग्रह नागरिक उपयोग के लिए खुले PRN कोड प्रसारित करते हैं। इस कारण रिसीवर उनकी पहचान इन्हीं कोडों से करता है।

स्पूफिंग के दौरान हमला करने वाला पहले यह अनुमान लगाता है कि उपयोगकर्ता के आसपास कौन-सा उपग्रह दिखाई देगा। इसके बाद हमलावर असली GPS सिग्नल जैसा दिखने वाला नकली सिग्नल ब्रॉडकास्ट करता है। 

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दुनिया की सबसे छोटी हवाई यात्रा - फोटो : Adobe Stock

धीरे-धीरे इसकी ताकत को बढ़ाया जाता है। रिसीवर को जब असली सिग्नल की तुलना में थोड़ा मजबूत या अधिक विश्वसनीय नकली सिग्नल मिलता है, तो वह इस नकली सिग्नल को असली मान लेता है। इस स्थिति में रिसीवर को समय या दूरी की गलत जानकारी मिलती है। इसके चलते उसे असली के बजाय किसी दूसरी गलत लोकेशन के बारे में पता चलता है।

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