किडनी कांड में फरीदाबाद के फोर्टिस हॉस्पिटल पर भी शिकंजा कसना लगभग तय है। यहां पर फर्जीवाड़ा कर किडनी ट्रांसप्लांट की तैयारी थी, तभी कानपुर में बर्रा पुलिस ने पूरे रैकेट का खुलासा कर दिया था। पुलिस को अस्पताल की ट्रांसप्लांट संबंधी दो फाइलें मिली हैं। चौंकाने वाली बात यह है कि फाइलों में दर्ज रिसीवर और डोनर दोनों के नाम फर्जी हैं। पुलिस कोऑर्डिनेटर के साथ ही अस्पताल प्रशासन से भी पूछताछ करने की तैयारी में है।
एसपी क्राइम राजेश यादव ने बताया कि पीएसआरआई हॉस्पिटल में जो केस ट्रांसप्लांट के हुए हैं, उनमें रिसीवर (जिनको किडनी ट्रांसप्लांट की गई) के नाम सही दर्ज थे। नाम व पते का सत्यापन भी हुआ था। केवल डोनर का नाम बदला गया था। बाद में वही डोनर पीड़ित के तौर पर पुलिस को मिले।
जांच के दौरान फोर्टिस हॉस्पिटल के किडनी ट्रांसप्लांट संबंधी दो फाइलें पुलिस को मिली थीं। इसमें एक फाइल तीरथ पाल और दूसरी अरुण कुमार की थी। दोनों का पता अलीगढ़ लिखा हुआ है। दोनों रिसीवर दिखाए गए हैं। पुलिस के मुताबिक जब सत्यापन किया गया तो पता चला कि इस नाम के रिसीवर ही नहीं है। वहीं जिन डोनरों का जिक्र है वह भी नहीं मिले। यानी कि डोनर और रिसीवर दोनों ही फर्जी बनाए गए थे।
इसलिए किया फर्जीवाड़ा
पुलिस के मुताबिक डोनर-रिसीवर के नाम फर्जी होने से भविष्य में पकड़े जाने का खतरा कम रहता था। इससे डोनर और रिसीवर दोनों सुरक्षित रहते थे। इसलिए ये फर्जीवाड़ा किया गया। हालांकि पुलिस अब वहां के अधिकारियों से पूछताछ कर असल रिसीवर व डोनर तक पहुंचने की कोशिश करेगी।
फर्जीवाड़े का ये है मास्टरमाइंड
पुलिस किडनी कांड में जयपुर निवासी शैलेष सक्सेना को जेल भेज चुकी है। पुलिस के मुताबिक डोनर-रिसीवर केनाम बदलकर ट्रांसप्लांट करवाने की योजना शैलेष ने ही बनाई थी। वह पहले भी किडनी कांड में जेल जा चुका है।
दोनों का मिलना बेहद जरूरी
पुलिस के मुताबिक इन दोनों डोनर और रिसीवरों का मिलना बेहद जरूरी है। दरअसल, पुलिस डोनर को ही गवाह बनाकर पेश कर रही है। ये हॉस्पिटल के खिलाफ सबसे मजबूत साक्ष्य और गवाह हैं। पुलिस का कहना है कि कोऑर्डिनेटर से पूछताछ से इन सभी सवालों के जवाब मिल सकते हैं।