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Jalandhar: शहरों को आइना दिखाता जालंधर का गांव गाखल बना मिसाल, पंचायत ने एनआरआई के साथ मिलकर बदली गांव की काया
मनमोहन सिंह, संवाद न्यूज एजेंसी, जालंधर (पंजाब)
Published by: निवेदिता वर्मा
Updated Fri, 01 Jul 2022 11:07 AM IST
सार
जालंधर के गांव गाखल ने कबड्डी को कई अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी दिए हैं। पंचायत ने परिवहन और अस्पताल के लिए प्लान तैयार किया। गांव के विकास के लिए एनआरआई पैसे भेजते रहते हैं।
जालंधर के गांव गाखल में बना पार्क।
- फोटो : संवाद न्यूज एजेंसी।
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अपने सपने पूरे करने के लिए भले ही गांव छोड़ दिया लेकिन इसकी मिट्टी से खुद को जुदा नहीं कर पाए। यहां के सपूतों ने विदेशों में जाकर खूब पैसे कमाए और गांव का कायाकल्प कर इसका कर्ज लौटाया। तमाम सुविधाओं की व्यवस्था की। आज यह गांव शहरों को आइना दिखाता है। हम बात कर रहे हैं जालंधर के गांव गाखल की। इसे एनआरआईज का गांव भी कह सकते हैं। 4500 की आबादी वाले इस गांव में 70 फीसदी लोग विदेश में हैं। उन्होंने इस गांव की सूरत बदलने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। यहां के बुजुर्गों का कहना है कि जिंदगी अगर जीनी है तो गांव में आइए। गांव एक दूसरे का दुख बांटना, मिल जुलकर रहना सिखाता है।
गांव वालों ने बताया कि छप्पड़ गंदगी से अटा रहता था। एनआरआई बेटों ने शानदार पार्क बना दिया। अब गांव के लोग यहां सुबह और शाम को सैर करते हैं। गांव में बेहतरीन सड़कें हैं। पीने के पानी के लिए टंकी लगी है। बिजली जाने पर लोगों के घर सोलर पैनल से रोशन हो जाते हैं। गलियों में लाइटें लगी हैं। प्राइमरी और सरकारी सीनियर सेकेंडरी स्कूल हैं, जो आजादी के समय बने थे।
सरकार की ग्रांट पर निर्भर नहीं रहा गांव
इन स्कूलों में पढ़कर गांव के कई शख्स देश-दुनिया में परचम लहरा चुके हैं। इनमें से एक हैं सेवानिवृत्त ब्रिगेडियर इंद्रजीत सिंह। सैनिक वेलफेयर के डायरेक्टर रहे इंद्रजीत सिंह ने गांव की सूरत बदलने की शुरुआत की। गाखल गांव की पंचायत सरकार की ग्रांट पर निर्भर नहीं रही, पैसे इकट्ठे कर खुद काम करवाए। मल्टीपल स्टेडियम है, जिसमें कई तरह के खेलों की सुविधाएं हैं। युवाओं के लिए जिम भी खोला गया है।
गांव ने कबड्डी को कई अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी दिए हैं, जिनसे प्रेरणा पाकर बच्चे आज भी मैदान में पसीना बहाते हैं। अच्छी बात यह है कि नशे को छूना तो दूर यहां कोई जानना भी नहीं चाहता। परिवहन और अस्पताल के लिये पंचायत का प्लान तैयार है और जल्द ही गुरुघर में चैरिटेबल अस्पताल खुल जाएगा। आज भी गांव के विकास के लिए एनआरआई पैसे भेजते रहते हैं।
पंचायत-एनआरआईज ने मिलकर संवारा गांव
अगर सरकारों के बलबूते गांवों का विकास होना होता तो हो जाता और हम आज विकसित होते, पर ऐसा नहीं है। पिछले सालों में गांव को पंजाब सरकार ने सिर्फ 5 लाख की ग्रांट दी, जिससे गलियां बनाने का काम भी नहीं हो सकता था। कुछ पैसा हमने केंद्र के वित्त विभाग फंड से लगाया और कुछ पंचायत ने एनआरआईज के सहयोग से गांव का कायाकल्प किया। - सुखवंत सिंह, सरपंच गांव गाखल
पंचायत लोगों की सहमति से करवाती है काम, सभी देते हैं सहयोग
गांव में विकास के कामों की बात आती है तो पंचायत बैठकर सभी की सहमति से काम करवाती है। गांव में विकास की रफ्तार फंड के कारण थमी थी, लेकिन लोगों के सहयोग से फिर पटरी पर लौट आई है। जल्द ही गांववासियों को चैरिटेबल अस्पताल मिल जाएगा, जिससे उन्हें शहर नहीं जाना पड़ेगा। -बलवीर कौर, पंचायत सदस्य
रोज लगा रहे पौधे, क्योंकि हरियाली से बढ़ती है सुंदरता
गांव में हरियाली पर भी खास ध्यान दिया जाता है, ताकि हम आने वाली पीढ़ियों को भी शुद्ध पर्यावरण दे सकें। बड़े स्तर पर गांव में पौधरोपण किया जाता है। जब मैं पौधरोपण करते हुए अपनी फोटो सोशल मीडिया पर डालता हूं तो अन्य लोग भी प्रेरित होते हैं। कई बार लोग मुझसे पौधे मांगकर ले जाते हैं। मैं चेक भी करता हूं कि पौधा कहां लगाया गया। अपने लगाए पौधों की खुद देखभाल करता हूं ताकि सूख न जाएं। गांव हो या शहर, कोठियों से नहीं, हरियाली से सुंदरता बढ़ती है। -कुलविंदर सिंह गाखल, रिटा. अध्यापक (स्टेट अवार्डी)
पहले बीच गांव में था छप्पड़, अब पार्क
गांव में क्या विकास हुआ यह यहां पहुंचते ही नजर आ जाता है। एक समय था जब बीच गांव में छप्पड़ हुआ करता था, जहां पंचायत ने एनआरआईज के सहयोग से पार्क बना दिया। गांव गाखल की नुहार कुछ सालों में बदली हैं जिसमें सभी का योगदान है। बदलाव की शुरुआत एक व्यक्ति कर तो सकता है पर उसे अंजाम तक पहुंचाने के लिए साथ जरूरी है। -हरभजन सिंह, गांव वासी
स्टेडियम, जिम में युवा बहाते हैं पसीना
गांव में स्टेडियम होने के बाद भी बच्चों को शिकायत रहती थी कि वर्कआउट के लिए शहर जाना पड़ेगा, जिसके बाद पंचायत ने गांव में ही स्टेडियम के साथ जिम भी खोल दिया। मैदान में खेलने के बाद युवा जिम में पसीना बहाते हैं। गांव ने कबड्डी के कई अंतराष्ट्रीय खिलाड़ी दिए हैं, जिन्हें देखकर युवा आगे बढ़ रहे हैं और नशे जैसी बुराइयों से कोसों दूर हैं। -ओंकार सिंह, पंचायत सदस्य और कबड्डी खिलाड़ी
गांव में सुविधाएं शहर से कम नहीं
कभी पढ़ाई और सुविधाओं के लिए गांव छोड़कर गए लोग वापस आना चाहते हैं, क्योंकि अब गांव में सुविधाएं शहर से कम नहीं हैं। यहां सुरक्षा के लिहाज से भी कोई खतरा नहीं। गांव के लोग मिल-जुलकर रहते हैं। वहीं गांव के शुद्ध वातावरण का शहरी रहन सहन से कोई मुकाबला नहीं है। ये तो बदलाव की शुरुआत है, एक वक्त होगा जब लोग गांवों में रहकर ही काम करेंगे। -गुरचरण सिंह, गांव वासी
विस्तार
अपने सपने पूरे करने के लिए भले ही गांव छोड़ दिया लेकिन इसकी मिट्टी से खुद को जुदा नहीं कर पाए। यहां के सपूतों ने विदेशों में जाकर खूब पैसे कमाए और गांव का कायाकल्प कर इसका कर्ज लौटाया। तमाम सुविधाओं की व्यवस्था की। आज यह गांव शहरों को आइना दिखाता है। हम बात कर रहे हैं जालंधर के गांव गाखल की। इसे एनआरआईज का गांव भी कह सकते हैं। 4500 की आबादी वाले इस गांव में 70 फीसदी लोग विदेश में हैं। उन्होंने इस गांव की सूरत बदलने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। यहां के बुजुर्गों का कहना है कि जिंदगी अगर जीनी है तो गांव में आइए। गांव एक दूसरे का दुख बांटना, मिल जुलकर रहना सिखाता है।
गांव वालों ने बताया कि छप्पड़ गंदगी से अटा रहता था। एनआरआई बेटों ने शानदार पार्क बना दिया। अब गांव के लोग यहां सुबह और शाम को सैर करते हैं। गांव में बेहतरीन सड़कें हैं। पीने के पानी के लिए टंकी लगी है। बिजली जाने पर लोगों के घर सोलर पैनल से रोशन हो जाते हैं। गलियों में लाइटें लगी हैं। प्राइमरी और सरकारी सीनियर सेकेंडरी स्कूल हैं, जो आजादी के समय बने थे।
सरकार की ग्रांट पर निर्भर नहीं रहा गांव
इन स्कूलों में पढ़कर गांव के कई शख्स देश-दुनिया में परचम लहरा चुके हैं। इनमें से एक हैं सेवानिवृत्त ब्रिगेडियर इंद्रजीत सिंह। सैनिक वेलफेयर के डायरेक्टर रहे इंद्रजीत सिंह ने गांव की सूरत बदलने की शुरुआत की। गाखल गांव की पंचायत सरकार की ग्रांट पर निर्भर नहीं रही, पैसे इकट्ठे कर खुद काम करवाए। मल्टीपल स्टेडियम है, जिसमें कई तरह के खेलों की सुविधाएं हैं। युवाओं के लिए जिम भी खोला गया है।
गांव ने कबड्डी को कई अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी दिए हैं, जिनसे प्रेरणा पाकर बच्चे आज भी मैदान में पसीना बहाते हैं। अच्छी बात यह है कि नशे को छूना तो दूर यहां कोई जानना भी नहीं चाहता। परिवहन और अस्पताल के लिये पंचायत का प्लान तैयार है और जल्द ही गुरुघर में चैरिटेबल अस्पताल खुल जाएगा। आज भी गांव के विकास के लिए एनआरआई पैसे भेजते रहते हैं।
पंचायत-एनआरआईज ने मिलकर संवारा गांव
अगर सरकारों के बलबूते गांवों का विकास होना होता तो हो जाता और हम आज विकसित होते, पर ऐसा नहीं है। पिछले सालों में गांव को पंजाब सरकार ने सिर्फ 5 लाख की ग्रांट दी, जिससे गलियां बनाने का काम भी नहीं हो सकता था। कुछ पैसा हमने केंद्र के वित्त विभाग फंड से लगाया और कुछ पंचायत ने एनआरआईज के सहयोग से गांव का कायाकल्प किया। - सुखवंत सिंह, सरपंच गांव गाखल
पंचायत लोगों की सहमति से करवाती है काम, सभी देते हैं सहयोग
गांव में विकास के कामों की बात आती है तो पंचायत बैठकर सभी की सहमति से काम करवाती है। गांव में विकास की रफ्तार फंड के कारण थमी थी, लेकिन लोगों के सहयोग से फिर पटरी पर लौट आई है। जल्द ही गांववासियों को चैरिटेबल अस्पताल मिल जाएगा, जिससे उन्हें शहर नहीं जाना पड़ेगा। -बलवीर कौर, पंचायत सदस्य
रोज लगा रहे पौधे, क्योंकि हरियाली से बढ़ती है सुंदरता
गांव में हरियाली पर भी खास ध्यान दिया जाता है, ताकि हम आने वाली पीढ़ियों को भी शुद्ध पर्यावरण दे सकें। बड़े स्तर पर गांव में पौधरोपण किया जाता है। जब मैं पौधरोपण करते हुए अपनी फोटो सोशल मीडिया पर डालता हूं तो अन्य लोग भी प्रेरित होते हैं। कई बार लोग मुझसे पौधे मांगकर ले जाते हैं। मैं चेक भी करता हूं कि पौधा कहां लगाया गया। अपने लगाए पौधों की खुद देखभाल करता हूं ताकि सूख न जाएं। गांव हो या शहर, कोठियों से नहीं, हरियाली से सुंदरता बढ़ती है। -कुलविंदर सिंह गाखल, रिटा. अध्यापक (स्टेट अवार्डी)
पहले बीच गांव में था छप्पड़, अब पार्क
गांव में क्या विकास हुआ यह यहां पहुंचते ही नजर आ जाता है। एक समय था जब बीच गांव में छप्पड़ हुआ करता था, जहां पंचायत ने एनआरआईज के सहयोग से पार्क बना दिया। गांव गाखल की नुहार कुछ सालों में बदली हैं जिसमें सभी का योगदान है। बदलाव की शुरुआत एक व्यक्ति कर तो सकता है पर उसे अंजाम तक पहुंचाने के लिए साथ जरूरी है। -हरभजन सिंह, गांव वासी
स्टेडियम, जिम में युवा बहाते हैं पसीना
गांव में स्टेडियम होने के बाद भी बच्चों को शिकायत रहती थी कि वर्कआउट के लिए शहर जाना पड़ेगा, जिसके बाद पंचायत ने गांव में ही स्टेडियम के साथ जिम भी खोल दिया। मैदान में खेलने के बाद युवा जिम में पसीना बहाते हैं। गांव ने कबड्डी के कई अंतराष्ट्रीय खिलाड़ी दिए हैं, जिन्हें देखकर युवा आगे बढ़ रहे हैं और नशे जैसी बुराइयों से कोसों दूर हैं। -ओंकार सिंह, पंचायत सदस्य और कबड्डी खिलाड़ी
गांव में सुविधाएं शहर से कम नहीं
कभी पढ़ाई और सुविधाओं के लिए गांव छोड़कर गए लोग वापस आना चाहते हैं, क्योंकि अब गांव में सुविधाएं शहर से कम नहीं हैं। यहां सुरक्षा के लिहाज से भी कोई खतरा नहीं। गांव के लोग मिल-जुलकर रहते हैं। वहीं गांव के शुद्ध वातावरण का शहरी रहन सहन से कोई मुकाबला नहीं है। ये तो बदलाव की शुरुआत है, एक वक्त होगा जब लोग गांवों में रहकर ही काम करेंगे। -गुरचरण सिंह, गांव वासी
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