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Margashirsha Purnima 2025: मार्गशीर्ष पूर्णिमा के दिन अवश्य करें यह एक छोटा सा उपाय, घर में आएंगी खुशियां

धर्म डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली Published by: मेघा कुमारी Updated Tue, 02 Dec 2025 05:32 PM IST
सार

Margashirsha Purnima Upay 2025: इस वर्ष 4 दिसंबर 2025 को मार्गशीर्ष पूर्णिमा है। यह तिथि माता लक्ष्मी, भगवान विष्णु और चंद्र देव को समर्पित है। इस दिन इन देवी-देवताओं की उपासना करने पर मानसिक शांति, मोक्ष प्राप्ति सहित आर्थिक समृद्धि मिलती हैं।

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Margshirsha Purnima Upay 2025 Astro Remedies For Good luck and  Prosperity
Margashirsha Purnima Upay 2025 - फोटो : अमर उजाला
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विस्तार
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Margashirsha Purnima Upay 2025: इस वर्ष 4 दिसंबर 2025 को मार्गशीर्ष पूर्णिमा है। यह तिथि माता लक्ष्मी, भगवान विष्णु और चंद्र देव को समर्पित है। इस दिन इन देवी-देवताओं की उपासना करने पर मानसिक शांति, मोक्ष प्राप्ति सहित आर्थिक समृद्धि मिलती हैं। इसके अलावा पूर्णिमा पर भक्ति भाव से पवित्र नदियों में स्नान व जरूरतमंदों को अन्न-धन का दान करने से जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार भी होता है। हालांकि, इस दिन दीप दान करने से समस्त बाधाओं का नाश होता है। वहीं विष्णु चालीसा का पाठ करना भी अत्यंत शुभ माना गया है। इससे भगवान विष्णु एवं माता लक्ष्मी की कृपा शीघ्र प्राप्त होती हैं। यह सरल उपाय आपकी सभी इच्छाएं भी पूरी कर सकता है। ऐसे में आइए इस शक्तिशाली चालीसा को जानते हैं।

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विष्णु चालीसा लाभ
विष्णु चालीसा के पाठ से आपको मोक्ष की प्राप्ति होती हैं। साथ ही धन लाभ के योग बनते हैं। यदि आप इस शक्तिशाली चालीसा का पाठ सुबह करते हैं, तो मानसिक शांति, कार्यों में सफलता, करियर में लाभ और जीवन में सुख-समृद्धि मिलती हैं। धार्मिक ग्रंथों में पाठ की महिमा का उल्लेख देखने को मिलता है। यह विष्णु जी को प्रसन्न करने का भी सबसे सरल उपाय है, जिससे लक्ष्मी जी का आशीर्वाद भी मिलता है।

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विष्णु चालीसा
॥ दोहा ॥

विष्णु सुनिए विनय,सेवक की चितलाय।
कीरत कुछ वर्णन करूँ,दीजै ज्ञान बताय॥

॥ चौपाई ॥
नमो विष्णु भगवान खरारी।कष्ट नशावन अखिल बिहारी॥
प्रबल जगत में शक्ति तुम्हारी।त्रिभुवन फैल रही उजियारी॥
सुन्दर रूप मनोहर सूरत।सरल स्वभाव मोहनी मूरत॥
तन पर पीताम्बर अति सोहत।बैजन्ती माला मन मोहत॥

शंख चक्र कर गदा बिराजे।देखत दैत्य असुर दल भाजे॥
सत्य धर्म मद लोभ न गाजे।काम क्रोध मद लोभ न छाजे॥
सन्तभक्त सज्जन मनरंजन।दनुज असुर दुष्टन दल गंजन॥
सुख उपजाय कष्ट सब भंजन।दोष मिटाय करत जन सज्जन॥

पाप काट भव सिन्धु उतारण।कष्ट नाशकर भक्त उबारण॥
करत अनेक रूप प्रभु धारण।केवल आप भक्ति के कारण॥
धरणि धेनु बन तुमहिं पुकारा।तब तुम रूप राम का धारा॥
भार उतार असुर दल मारा।रावण आदिक को संहारा॥

आप वाराह रूप बनाया।हिरण्याक्ष को मार गिराया॥
धर मत्स्य तन सिन्धु बनाया।चौदह रतनन को निकलाया॥
अमिलख असुरन द्वन्द मचाया।रूप मोहनी आप दिखाया॥
देवन को अमृत पान कराया।असुरन को छबि से बहलाया॥

कूर्म रूप धर सिन्धु मझाया।मन्द्राचल गिरि तुरत उठाया॥
शंकर का तुम फन्द छुड़ाया।भस्मासुर को रूप दिखाया॥
वेदन को जब असुर डुबाया।कर प्रबन्ध उन्हें ढुँढवाया॥
मोहित बनकर खलहि नचाया।उसही कर से भस्म कराया॥

असुर जलंधर अति बलदाई।शंकर से उन कीन्ह लड़ाई॥
हार पार शिव सकल बनाई।कीन सती से छल खल जाई॥
सुमिरन कीन तुम्हें शिवरानी।बतलाई सब विपत कहानी॥
तब तुम बने मुनीश्वर ज्ञानी।वृन्दा की सब सुरति भुलानी॥

देखत तीन दनुज शैतानी।वृन्दा आय तुम्हें लपटानी॥
हो स्पर्श धर्म क्षति मानी।हना असुर उर शिव शैतानी॥
तुमने धुरू प्रहलाद उबारे।हिरणाकुश आदिक खल मारे॥
गणिका और अजामिल तारे।बहुत भक्त भव सिन्धु उतारे॥

हरहु सकल संताप हमारे।कृपा करहु हरि सिरजन हारे॥
देखहुँ मैं निज दरश तुम्हारे।दीन बन्धु भक्तन हितकारे॥
चहत आपका सेवक दर्शन।करहु दया अपनी मधुसूदन॥
जानूं नहीं योग्य जप पूजन।होय यज्ञ स्तुति अनुमोदन॥

शीलदया सन्तोष सुलक्षण।विदित नहीं व्रतबोध विलक्षण॥
करहुँ आपका किस विधि पूजन।कुमति विलोक होत दुख भीषण॥
करहुँ प्रणाम कौन विधिसुमिरण।कौन भाँति मैं करहुँ समर्पण॥
सुर मुनि करत सदा सिवकाई।हर्षित रहत परम गति पाई॥

दीन दुखिन पर सदा सहाई।निज जन जान लेव अपनाई॥
पाप दोष संताप नशाओ।भव बन्धन से मुक्त कराओ॥
सुत सम्पति दे सुख उपजाओ।निज चरनन का दास बनाओ॥
निगम सदा ये विनय सुनावै।पढ़ै सुनै सो जन सुख पावै॥

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डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं, ज्योतिष, पंचांग, धार्मिक ग्रंथों आदि पर आधारित है। यहां दी गई सूचना और तथ्यों की सटीकता, संपूर्णता के लिए अमर उजाला उत्तरदायी नहीं है।
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