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Mokshada Ekadashi Vrat Katha: पितरों को मुक्ति दिलाने वाला दिव्य व्रत मोक्षदा एकादशी, जानिए महत्व और कथा
धर्म डेस्क, अमर उजाला
Published by: विनोद शुक्ला
Updated Sun, 30 Nov 2025 06:59 PM IST
सार
एकादशी तिथि जगतगुरु विष्णुस्वरूप है जो समस्त पापों का अपहरण करने वाली है। सभी एकादशियों में नारायण समतुल्य पुण्यफल देने का सामर्थ्य है। ये सभी अपने भक्तों की कामनाओं की पूर्ति कर उन्हें विष्णुलोक यानि वैकुंठ पहुंचाती हैं।
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Mokshada Ekadashi
- फोटो : अमर उजाला
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विस्तार
Mokshada Ekadashi Vrat Katha: सनातन धर्म में एकादशी व्रत बहुत ही पवित्र, शांतिदायक और पापनाशक माना गया है। एकादशी तिथि जगतगुरु विष्णुस्वरूप है जो समस्त पापों का अपहरण करने वाली है। सभी एकादशियों में नारायण समतुल्य पुण्यफल देने का सामर्थ्य है। ये सभी अपने भक्तों की कामनाओं की पूर्ति कर उन्हें विष्णुलोक यानि वैकुंठ पहुंचाती हैं। इस व्रत का पालन करने से शुभ फलों में वृद्धि होकर अशुभता का नाश होता है।
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मोक्षदा एकादशी का महत्व और गीता जयंती
इस महीने में शुक्ल पक्ष की मोक्षदा एकादशी का व्रत करने से नीच योनि में गए पितरों को मुक्ति मिलती है। भक्ति-भाव से किए गए इस व्रत के प्रभाव से प्राणी सांसारिक बंधनों से मुक्त होकर मोक्ष को प्राप्त होता है। द्वापर युग में योगेश्वर श्री कृष्ण ने इस दिन अर्जुन को मनुष्य का जीवन सार्थक बनाने वाली गीता का उपदेश दिया था। गीता जैसे महान ग्रंथ का प्रादुर्भाव होने के कारण इस दिन को गीता जयंती के रूप में भी मनाया जाता है। गीता का ज्ञान हमें दुःख, क्रोध, लोभ व अज्ञानता के दलदल से बाहर निकालने के लिए प्रेरित करता है। सत्य, दया, प्रेम और सत्कर्म को अपने जीवन में धारण करने वाला प्राणी ही मोक्ष को प्राप्त कर सकता है। इस दिन श्रीमदभगवत गीता की सुगंधित फूलों से पूजा कर, गीता का पाठ करना चाहिए। गीता पाठ करने से मनुष्य के सभी कष्ट दूर होकर उसे धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की प्राप्ति होती है। मोक्ष प्रदान करने वाली यह एकादशी मनुष्यों के लिए चिंतामणि के समान समस्त कामनाओं को पूर्ण कर बड़े-बड़े पातकों का नाश करने वाली है।
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तुलसी मंजरी और पीले चंदन से श्रीहरि का पूजन
एकादशी स्वयं विष्णुप्रिया है इसलिए इस दिन जप-तप, पूजा-पाठ करने से प्राणी जगत नियंता विष्णु का सानिध्य प्राप्त कर लेता है। इस दिन गंगा आदि पवित्र नदियों में स्नान व भगवान विष्णु के पूजन का विशेष महत्त्व है। इस एकादशी को श्री हरि को प्रिय तुलसी की मंजरी तथा पीला चन्दन, रोली, अक्षत, पीले पुष्प, ऋतु फल एवं धूप-दीप, मिश्री आदि से भगवान दामोदर का भक्ति-भाव से पूजन करना चाहिए। रात्रि के समय भगवान नारायण की प्रसन्नता के लिए नृत्य, भजन-कीर्तन और स्तुति के द्वारा जागरण करना चाहिए। जागरण करने वाले को जिस फल की प्राप्ति होती है, वह हज़ारों बर्ष तपस्या करने से भी नहीं मिलता। भगवान श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर को मोक्षदा एकादशी का महत्व समझाते हुए कहा है कि इस एकादशी के माहात्म्य को पढ़ने और सुनने मात्र से वाजपेय यज्ञ का फल मिलता है। इस व्रत को करने से प्राणी के जन्म-जन्मांतर के पाप क्षीण हो जाते हैं तथा जन्म-मरण के चक्र से मुक्ति मिलती है।
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पितरों को मोक्ष दिलाने वाली दिव्य कथा
पदमपुराण में वर्णित इस एकादशी की कथा के अनुसार पूर्व काल की बात है, वैष्णवों से विभूषित परम रमणीय चंपक नगर में वैखानस नाम के राजा रहते थे। वे अपनी प्रजा का पुत्र की भांति पालन करते थे। एक रात राजा ने सपने में अपने पितरों को नीच योनियों में पड़ा देखा, जो उनसे उन्हें नरक से मुक्ति दिलाने को कह रहे थे। उन सबको इस अवस्था में देखकर राजा के मन में बड़ा विस्मय हुआ और प्रातः काल ब्राह्मणों को उन्होंने उस स्वप्न के बारे में बताया। ब्राह्मणों के कहने पर राजा पर्वत मुनि के आश्रम में जाकर उनसे मिले। मुनि की आज्ञा से राजा ने अपने पितरों की मुक्ति के उद्देश्य से मोक्षदा एकादशी का विधि-विधान से व्रत किया एवं व्रत का पुण्य अपने समस्त पितरों को प्रदान किया।
पुण्य देते ही क्षण भर में आकाश से फूलों की बर्षा होने लगी। वैखानस के पिता पितरों सहित नरक से छुटकारा पा गए और आकाश में आकर राजा के प्रति यह पवित्र वचन बोले—'बेटा! तुम्हारा कल्याण हो।' ये कहकर वे स्वर्ग में चले गए।