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ब्रह्माजी ने जब शिवजी का किया अपमान, तब भोलेनाथ के क्रोध से उत्पन्न हुए भैरव, पढ़ें संपूर्ण कथा
धर्म डेस्क, अमर उजाला
Published by: विनोद शुक्ला
Updated Tue, 11 Nov 2025 12:08 PM IST
सार
Kaal Bhairav Jayanti 2025: मार्गशीर्ष मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को कालभैरव जयंती मनाई जाती है। इस दिन मध्याह्न में भगवान शिव के अंश से भैरव की उत्पत्ति हुई थी, जिन्हें शिव का पांचवा अवतार माना गया है।
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Kaal Bhairav Jayanti 2025
- फोटो : अमर उजाला
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विस्तार
Kaal Bhairav Jayanti 2025: हिंदू पंचांग के अनुसार इस साल 12 नवंबर, बुधवार को काल भैरव जयंती मनाई जाएगी। मार्गशीर्ष मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को कालभैरव जयंती मनाई जाती है। इस दिन मध्याह्न में भगवान शिव के अंश से भैरव की उत्पत्ति हुई थी, जिन्हें शिव का पांचवा अवतार माना गया है। धार्मिक मान्यता है कि जो कोई भी भक्तजन काल भैरव जयंती के दिन विधि-विधान से उनकी पूजा करते हैं, उनके सारे दुख दूर होते हैं।
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काल भैरव पूजा से मिलने वाला फल
शिव पुराण में कहा गया है कि
"भैरवः पूर्णरूपोहि शंकरस्य परात्मनः। मूढास्तेवै न जानन्ति मोहितारूशिवमायया।"
अर्थात भैरव परमात्मा शंकर के ही रूप हैं, लेकिन अज्ञानी मनुष्य शिव की माया से ही मोहित रहते हैं। नंदीश्वर भी कहते हैं कि जो शिव भक्त शंकर के भैरव रूप की आराधना नित्य प्रति करता है, उसके लाखों जन्मों में किए हुए पाप नष्ट हो जाते हैं। इनके स्मरण और दर्शन मात्र से ही प्राणी निर्मल हो जाता है। कालभैरव की पूजा करने से नकारात्मक शक्तियों, ऊपरी बाधा और भूत-प्रेत जैसी समस्याएं दूर हो जाती हैं।
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देवताओं का प्रश्न और ब्रह्मा-विष्णु का मत
शिव के भैरव रूप में प्रकट होने की अद्भुत घटना यह है कि एक बार सुमेरु पर्वत पर देवताओं ने ब्रह्मा जी से प्रश्न किया कि "परमपिता, इस चराचर जगत में अविनाशी तत्व कौन है जिनका आदि-अंत किसी को भी पता न हो?"
इस पर ब्रह्माजी ने कहा कि इस जगत में अविनाशी तत्व तो केवल मैं ही हूं, क्योंकि यह सृष्टि मेरे द्वारा ही सृजित हुई है। जब देवताओं ने यही प्रश्न विष्णुजी से किया तो उन्होंने कहा कि मैं इस चराचर जगत का भरण-पोषण करता हूं, अतः अविनाशी तत्व तो मैं ही हूं।
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वेदों का मत और भगवान रूद्र की महिमा
इसे सत्यता की कसौटी पर परखने के लिए चारों वेदों को बुलाया गया। चारों वेदों ने एक स्वर में कहा कि जिनके भीतर चराचर जगत, भूत, भविष्य और वर्तमान समाया हुआ है, जिनका कोई आदि-अंत नहीं है, जो अजन्मा हैं, जो जीवन-मरण और सुख-दुःख से परे हैं, देवता-दानव जिनका समान रूप से पूजन करते हैं वे अविनाशी तो भगवान रूद्र ही हैं।
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ब्रह्मा का अपमान और शिव का क्रोध
वेदों के द्वारा शिव के बारे में इस तरह की वाणी सुनकर ब्रह्मा जी के पांचवें मुख ने शिव के विषय में कुछ अपमानजनक शब्द कहे, जिन्हें सुनकर चारों वेद अति दुखी हुए। इसी समय एक दिव्यज्योति के रूप में भगवान रूद्र प्रकट हुए। ब्रह्मा जी ने कहा "हे रूद्र! तुम मेरे ही शरीर से पैदा हुए हो, अधिक रुदन करने के कारण मैंने ही तुम्हारा नाम 'रूद्र' रखा है, अतः तुम मेरी सेवा में आ जाओ।" ब्रह्मा के इस आचरण पर शिव को भयानक क्रोध आया और उन्होंने भैरव नामक पुरुष को उत्पन्न किया और कहा कि "तुम ब्रह्मा पर शासन करो।"
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भैरव का प्राकट्य और काशी के कोतवाल
उस दिव्यशक्ति संपन्न भैरव ने अपने बाएं हाथ की सबसे छोटी अंगुली के नाखून से शिव के प्रति अपमानजनक शब्द कहने वाले ब्रह्मा के पांचवे सिर को ही काट दिया, जिसके परिणामस्वरूप उन्हें ब्रह्महत्या का पाप लगा। शिव के कहने पर भैरव ने काशी प्रस्थान किया, जहां उन्हें ब्रह्महत्या से मुक्ति मिली।
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