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Gita Jayanti 2025: रोजमर्रा के जीवन को सरल और संतुलित बनाते हैं गीता ये 10 उपदेश
धर्म डेस्क, अमर उजाला
Published by: विनोद शुक्ला
Updated Mon, 01 Dec 2025 11:20 AM IST
सार
Gita Jayanti 2025: परिस्थितियां कैसी भी हों, मन को संतुलित और स्थिर रखना ही स्थितप्रज्ञता है। गीता सिखाती है कि न सफलता से अत्यधिक हर्ष हो और न विफलता से दुख। संतुलन ही जीवन की असली शक्ति है।
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- फोटो : Amar Ujala
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विस्तार
Gita Jayanti 2025: भारतीय ज्ञान परंपरा में श्रीमद्भगवद्गीता वह ग्रंथ है जिसे जीवन का मार्गदर्शन देने वाला दिव्य शास्त्र कहा गया है। गीता केवल धर्म-ग्रंथ नहीं, बल्कि व्यवहार, कर्तव्य, आत्मबल और संतुलित सोच का अद्भुत मार्गदर्शन प्रदान करने वाली जीवन-पुस्तिका है। इसमें भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को जो उपदेश दिए, वे आज भी हर परिस्थिति में व्यक्ति को सही निर्णय लेने की क्षमता और जीवन जीने की कला सिखाते हैं। गीता के उपदेश मानसिक मजबूती, कर्मयोग, संयम, त्याग और सकारात्मक दृष्टिकोण का आधार हैं। यहां गीता के ऐसे दस महत्वपूर्ण उपदेश प्रस्तुत हैं जो आज के जीवन में भी उतने ही प्रासंगिक हैं जितने महाभारत काल में थे।
1. कर्म पर अधिकार, फल पर नहीं
गीता का सबसे प्रसिद्ध उपदेश है “कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन”। इसका अर्थ है कि व्यक्ति का अधिकार केवल कर्म पर है, फल पर नहीं। यह उपदेश हमें परिणाम की चिंता छोड़कर श्रेष्ठ और पूर्ण निष्ठा से कर्म करने की प्रेरणा देता है।
2. स्थितप्रज्ञ बनना सीखें
परिस्थितियां कैसी भी हों, मन को संतुलित और स्थिर रखना ही स्थितप्रज्ञता है। गीता सिखाती है कि न सफलता से अत्यधिक हर्ष हो और न विफलता से दुख। संतुलन ही जीवन की असली शक्ति है।
3. अनुशासन ही आत्म-विकास का मार्ग
भगवान कृष्ण बताते हैं कि मन को वश में किए बिना कोई भी व्यक्ति आत्मज्ञान प्राप्त नहीं कर सकता। अनुशासित मन ही दृढ़ निर्णय, ज्ञान और सही मार्ग चुनने योग्य होता है।
4. निस्वार्थ भाव से कर्म करना
गीता सिखाती है कि जो व्यक्ति बिना किसी स्वार्थ के, केवल कर्तव्य समझकर कर्म करता है, वही सच्चे अर्थों में कर्मयोगी कहलाता है। ऐसा कर्म जीवन में स्थायी संतोष देता है।
5. क्रोध से बुद्धि भ्रष्ट होती है
गीता में कहा गया है कि क्रोध से विवेक नष्ट होता है। यह उपदेश संयम और धैर्य की महत्ता समझाता है। शांत चित्त ही सही निर्णय लेने में सक्षम होता है।
6. आत्मा अजर-अमर है
गीता बताती है कि आत्मा न जन्म लेती है न मरती है। यह अनंत और शाश्वत है। यह उपदेश व्यक्ति को भय, असुरक्षा और मानसिक दबाव से मुक्त करने में सहायक है।
कृष्ण अर्जुन से कहते हैं कि अत्यधिक मोह, अपेक्षा और आसक्ति दुख का कारण हैं। संबंध रखें, कर्तव्य निभाएं, परंतु मन को बंधन में न जकड़ें—यही स्वस्थ जीवन की कुंजी है।
8. ज्ञान और विवेक का महत्व
गीता में ज्ञान को सर्वोच्च शक्ति बताया गया है। ज्ञान व्यक्ति को सही-गलत का विवेक देता है और अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाता है।
भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं कि जो व्यक्ति ईश्वर पर समर्पित भाव रखता है, उसे जीवन की कठिनाइयों से पार जाने की अद्भुत शक्ति मिलती है। आस्था मन को मजबूत बनाती है।
गीता सिखाती है कि परिस्थितियां कैसी भी हों, कर्तव्य से पीछे नहीं हटना चाहिए। अर्जुन को रणभूमि में धर्म युद्ध के लिए प्रेरित करते हुए भगवान ने बताया कि कर्तव्य ही जीवन का सर्वोच्च धर्म है।
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1. कर्म पर अधिकार, फल पर नहीं
गीता का सबसे प्रसिद्ध उपदेश है “कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन”। इसका अर्थ है कि व्यक्ति का अधिकार केवल कर्म पर है, फल पर नहीं। यह उपदेश हमें परिणाम की चिंता छोड़कर श्रेष्ठ और पूर्ण निष्ठा से कर्म करने की प्रेरणा देता है।
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2. स्थितप्रज्ञ बनना सीखें
परिस्थितियां कैसी भी हों, मन को संतुलित और स्थिर रखना ही स्थितप्रज्ञता है। गीता सिखाती है कि न सफलता से अत्यधिक हर्ष हो और न विफलता से दुख। संतुलन ही जीवन की असली शक्ति है।
3. अनुशासन ही आत्म-विकास का मार्ग
भगवान कृष्ण बताते हैं कि मन को वश में किए बिना कोई भी व्यक्ति आत्मज्ञान प्राप्त नहीं कर सकता। अनुशासित मन ही दृढ़ निर्णय, ज्ञान और सही मार्ग चुनने योग्य होता है।
4. निस्वार्थ भाव से कर्म करना
गीता सिखाती है कि जो व्यक्ति बिना किसी स्वार्थ के, केवल कर्तव्य समझकर कर्म करता है, वही सच्चे अर्थों में कर्मयोगी कहलाता है। ऐसा कर्म जीवन में स्थायी संतोष देता है।
5. क्रोध से बुद्धि भ्रष्ट होती है
गीता में कहा गया है कि क्रोध से विवेक नष्ट होता है। यह उपदेश संयम और धैर्य की महत्ता समझाता है। शांत चित्त ही सही निर्णय लेने में सक्षम होता है।
6. आत्मा अजर-अमर है
गीता बताती है कि आत्मा न जन्म लेती है न मरती है। यह अनंत और शाश्वत है। यह उपदेश व्यक्ति को भय, असुरक्षा और मानसिक दबाव से मुक्त करने में सहायक है।
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7. आसक्ति दुख का कारण हैकृष्ण अर्जुन से कहते हैं कि अत्यधिक मोह, अपेक्षा और आसक्ति दुख का कारण हैं। संबंध रखें, कर्तव्य निभाएं, परंतु मन को बंधन में न जकड़ें—यही स्वस्थ जीवन की कुंजी है।
8. ज्ञान और विवेक का महत्व
गीता में ज्ञान को सर्वोच्च शक्ति बताया गया है। ज्ञान व्यक्ति को सही-गलत का विवेक देता है और अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाता है।
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9 समर्पण और आस्था से मिलती है शक्तिभगवान श्रीकृष्ण कहते हैं कि जो व्यक्ति ईश्वर पर समर्पित भाव रखता है, उसे जीवन की कठिनाइयों से पार जाने की अद्भुत शक्ति मिलती है। आस्था मन को मजबूत बनाती है।
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10. हर परिस्थिति में कर्तव्य का पालनगीता सिखाती है कि परिस्थितियां कैसी भी हों, कर्तव्य से पीछे नहीं हटना चाहिए। अर्जुन को रणभूमि में धर्म युद्ध के लिए प्रेरित करते हुए भगवान ने बताया कि कर्तव्य ही जीवन का सर्वोच्च धर्म है।