Sheetal Devi: जिनके हाथ नहीं, लेकिन हौसले हैं बेमिसाल; पैर से धनुष थामकर भारत का गौरव बनीं तीरंदाज शीतल देवी
जन्म से ही भुजाहीन पैरा तीरंदाज शीतल देवी ने गुरुवार को एक और उपलब्धि हासिल करते हुए जेद्दा में होने वाले आगामी एशिया कप चरण तीन के लिए भारत की सक्षम जूनियर टीम में जगह बनाई। विश्व कंपाउंड चैंपियन शीतल के लिए एक सक्षम अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिता के लिए भारतीय टीम में शामिल होना एक और ऐतिहासिक उपलब्धि है।
विस्तार
टीम की घोषणा के बाद शीतल ने सोशल मीडिया पर लिखा, 'जब मैंने प्रतिस्पर्धा शुरू की थी, मेरा एक छोटा सा सपना था, एक दिन सक्षम तीरंदाजों के साथ मुकाबला करने का। शुरुआत में मैं असफल हुई, लेकिन हर हार से सीखा। आज वो सपना थोड़ा और करीब आ गया है।' यह भावनात्मक संदेश केवल एक खिलाड़ी का नहीं, बल्कि उस संघर्ष की आवाज है, जो हर दिन अपनी सीमाओं से लड़ते हुए जीतने का जज्बा रखता है।
भारत की एशिया कप सक्षम टीम में जगह बनाई
टीमें इस प्रकार हैं :
रिकर्व
पुरुष : रामपाल चौधरी, रोहित कुमार, मयंक कुमार
महिला: कोंडापावुलुरी युक्ता श्री, वैष्णवी कुलकर्णी, कृतिका बिचपुरिया
कंपाउंड
पुरुष : प्रद्युमन यादव, वासु यादव, देवांश सिंह
महिला : तेजल साल्वे, वैदेही जाधव, शीतल देवी।
When I started competing, I had a small dream - to one day compete alongside the able-bodied and win medals ♥️ I didn’t make it at first, but I kept going, learning from every setback.
— SheetalArcher (@ArcherSheetal) November 7, 2025
Now, that dream is one step closer. 🌟
In the Asia Cup trials, I secured Rank 3 and will now… pic.twitter.com/q0v3wgKKfC
शीतल ने तुर्किये की ओजनूर क्यूर गिर्डी से प्रेरणा ली, जो पैरालंपिक के साथ-साथ सक्षम खिलाड़ियों की प्रतियोगिताओं में भी हिस्सा लेती हैं। पेरिस पैरालंपिक 2024 में कंपाउंड मिश्रित टीम में कांस्य जीतने वाली शीतल अब उसी राह पर हैं, सीमाओं से परे जाकर अपने निशाने साधने की।
हाल ही में सोनीपत में हुए राष्ट्रीय चयन ट्रायल में शीतल ने 60 से अधिक सक्षम खिलाड़ियों के बीच शानदार प्रदर्शन किया। उन्होंने क्वालिफिकेशन राउंड में 703 अंक (पहले दौर में 352, दूसरे में 351) हासिल किए, जो शीर्ष क्वालिफायर तेजल साल्वे के बराबर था। अंतिम रैंकिंग में तेजल (15.75 अंक) और वैदेही जाधव (15 अंक) के बाद शीतल ने 11.75 अंक के साथ तीसरा स्थान हासिल किया, ज्ञानेश्वरी गडाधे को मात्र 0.25 अंकों से पीछे छोड़ते हुए। भारत की कंपाउंड टीम में अब तेजल साल्वे, वैदेही जाधव और शीतल देवी शामिल हैं। एक ऐसी टीम, जिसमें दृढ़ इच्छाशक्ति और महिला सशक्तिकरण की मिसाल है।
शीतल का बचपन जम्मू-कश्मीर के किश्तवाड़ जिले के लोईधार गांव में बीता। एक पहाड़ी इलाका, जहां जिंदगी खुद एक चुनौती है। जन्म से हाथ न होने के बावजूद शीतल ने कभी खुद को असहाय नहीं माना। बचपन में वह पैरों से फुटबॉल खेलतीं, लकड़ी का धनुष बनाकर तीर चलातीं, और दोस्तों के साथ पेड़ों पर चढ़ जातीं। उनका एक वीडियो वायरल हुआ था, जिसमें वह पैर से बोतल को हवा में उछालकर सीधा खड़ा कर देती हैं, जबकि उनके दोस्त हाथ से भी वैसा नहीं कर पाते। यही आत्मविश्वास आज उन्हें विश्व मंच पर ले आया है।
शीतल बताती हैं, 'मैं बचपन से हर काम पैरों से करती हूं, लिखना, खाना, खेलना, सबकुछ।' उनके अनुसार, जब उन्होंने तीरंदाजी शुरू की, तो धनुष का वजन उठाना मुश्किल था। लेकिन जब कोच कुलदीप वेदवान ने देखा कि वह पैर से पेड़ पर चढ़ जाती हैं, तो उन्होंने कहा, 'अगर यह लड़की पैर से पेड़ पर चढ़ सकती है, तो तीरंदाजी में इतिहास भी बना सकती है।' यही विश्वास शीतल की ताकत बना।
पिछले साल हुए एशियाई पैरा खेलों में शीतल ने दो स्वर्ण और एक रजत पदक जीतकर भारत का नाम रोशन किया। उन्हें साल 2023 की सर्वश्रेष्ठ एशियाई युवा एथलीट भी चुना गया।
अब जब वह सक्षम तीरंदाजों की टीम में जगह बना चुकी हैं, तो यह स्पष्ट संकेत है कि भारत में स्पोर्ट्स इनक्लूजन की दिशा में नई शुरुआत हो चुकी है।
शीतल बताती हैं कि अकादमी में शुरुआती दिनों में धनुष पकड़ना भी कठिन था। दूसरों का तीर निशाने पर लगता था, उनका चूक जाता था। एक दिन वह रो पड़ीं और कहा, 'मुझसे नहीं होगा।' तब कोच कुलदीप वेदवान और कोच अभिलाषा चौधरी ने उन्हें समझाया, 'हार मत मानो। अगर आज धनुष भारी लग रहा है, तो कल वही तुम्हारे हाथों की ताकत बनेगा।' यही बात शीतल के जीवन का टर्निंग पॉइंट बनी।
अमर उजाला के एक संवाद कार्यक्रम में शीतल ने कहा था, 'मेरी जिंदगी में अब तक सिर्फ अच्छे लोग आए हैं। मुझे लगता है मेरे जैसा किस्मत वाला कोई नहीं। लोगों ने मुझे बहुत हौसला दिया है।' यह बात उनके सकारात्मक दृष्टिकोण की झलक देती है। वह अपनी सफलता का श्रेय अपने कोचों और परिवार को देती हैं, जिन्होंने कभी हार मानने नहीं दी।
शीतल के पिता मान सिंह और मां शक्ति देवी हमेशा उनकी ताकत रहे हैं। पिता कहते हैं, 'लोग कहते थे हमारी बेटी कुछ नहीं कर पाएगी, लेकिन हमने कभी उसे कमजोर नहीं समझा।'
आज जब शीतल तिरंगा लहराती हैं, तो उनके माता-पिता की आंखों में गर्व के आंसू झलकते हैं।
शीतल ने हंसते हुए बताया, 'मेरा पहला सपना टीचर बनना था, लेकिन जिंदगी ने मुझे तीरंदाज बना दिया।' बचपन में स्कूल जाना, दोस्तों से खेलना और पढ़ना उन्हें बेहद पसंद था। लेकिन किसे पता था कि एक दिन यही पैर, जो ब्लैकबोर्ड तक पहुंचने के लिए चलते थे, धनुष भी थामेंगे और निशाना भी लगाएंगे।
आज शीतल देवी सिर्फ भारत ही नहीं, पूरी दुनिया के लिए प्रेरणा की मिसाल बन चुकी हैं। उन्होंने साबित किया है कि अगर इरादे मजबूत हों, तो शरीर की कमी भी एक वरदान बन जाती है। उनकी कहानी सिर्फ एक खेल उपलब्धि नहीं, बल्कि यह संदेश है कि 'असंभव शब्द सिर्फ उन लोगों के लिए है, जो कोशिश करना छोड़ देते हैं।'
शीतल देवी की कहानी सिर्फ एक एथलीट की नहीं, बल्कि आशा, साहस और आत्मविश्वास की गाथा है। उन्होंने दिखाया कि अलग होना कमजोरी नहीं, ताकत है, अगर हम खुद पर भरोसा रखें। आज वह पैर से धनुष थामकर तीर चलाती हैं, लेकिन उनके निशाने हमेशा दिलों को भेदते हैं, क्योंकि उनके हर तीर में सिर्फ बारूद नहीं, बल्कि हौसले की आग होती है।