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Jio-Facebook: जियो-फेसबुक डील मामले में RIL को झटका, सुप्रीम कोर्ट ने 30 लाख रुपये के जुर्माने को सही ठहराया

टेक डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली Published by: नीतीश कुमार Updated Tue, 02 Dec 2025 01:43 PM IST
सार

Jio-Facebook Deal: सुप्रीम कोर्ट ने रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड (RIL) को जियो-फेसबुक डील मामले में राहत देने से इनकार कर दिया है। शीर्श अदालत ने कंपनी और उसके दो अधिकारियों की उस याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें SEBI द्वारा लगाए गए 30 लाख रुपये के जुर्माने को चुनौती दी गई थी।

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रिलायंस इंडस्ट्रीज को सुप्रीम कोर्ट से झटका - फोटो : अमर उजाला
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विस्तार
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रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड (RIL) को मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट से बड़ा झटका लगा। शीर्ष अदालत ने कंपनी और उसके दो शीर्ष अधिकारियों- सावित्री पारेख और के सेथुरमन की वह अपील खारिज कर दी, जिसमें उन्होंने भारतीय स्टॉक एक्सचेंज बोर्ड (SEBI) द्वारा लगाए गए 30 लाख रुपये के जुर्माने को चुनौती दी थी।
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क्या है मामला?
मार्च 2020 में सोशल मीडिया और बिजनेस रिपोर्ट्स में यह चर्चा तेज हो गई थी कि फेसबुक जियो प्लेटफॉर्म्स में बड़ी हिस्सेदारी खरीदने जा रहा है। लेकिन RIL ने इस पर तुरंत कोई आधिकारिक स्पष्टीकरण या खंडन जारी नहीं किया। आखिरकार कंपनी ने 22 अप्रैल 2020 को एलान किया कि फेसबुक ने 43,574 करोड़ रुपये में जियो में 9.99% हिस्सेदारी खरीदने का फैसला किया है। यानी मीडिया रिपोर्ट्स के सामने आने के 28 दिन बाद आधिकारिक जानकारी दी गई। SEBI का आरोप था कि इतनी देरी अनऑथराइडज्ड सलेक्टिव इंफॉर्मेशन लीक को बढ़ावा देती है और यूपीएसआई (UPSI) नियमों का उल्लंघन करती है।
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SEBI और SAT की जांच में क्या पाया गया?
भारतीय प्रतिभूति अपीलीय न्यायाधिकरण (SAT) ने SEBI के निर्णय को सही ठहराते हुए कहा था कि जब 24-25 मार्च 2020 को खबरें सामने आईं, तो कंपनी को तुरंत पुष्टि या खंडन जारी करना चाहिए था। लेकिन आधिकारिक जानकारी लगभग 28 दिन बाद 22 अप्रैल 2020 को दी गई ।

मुख्य न्यायाधीश सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की बेंच ने कहा कि SAT के निष्कर्ष तार्किक हैं और इसमें किसी हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं है। उन्होंने यह भी कहा कि इस मामले में ऐसा कोई कानून संबंधी प्रश्न नहीं है जिस पर शीर्ष अदालत को दखल देना चाहिए।

क्यों महत्वपूर्ण हैं UPSI के नियम?
यूपीएसआई से जुड़ी जानकारी बाजार को सीधे प्रभावित करती है। अगर कोई कंपनी इसे समय पर सार्वजनिक नहीं करती है, तो इससे शेयर की कीमत पर असर पड़ सकता है, इनसाइडर ट्रेडिंग की संभावनाएं बढ़ सकती हैं और बाजार में गलत संदेश जा सकता है। इसीलिए SEBI ने इस मामले को गंभीर उल्लंघन मानते हुए RIL और उसके अधिकारियों को दोषी ठहराया।

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कोर्ट ने SEBI के फैसले को रखा बरकरार
लिस्टिंग ऑब्लिगेशन्स और डिस्क्लोजर रिक्वायरमेंट्स (LODR) नियमों के अनुसार, कोई भी सूचीबद्ध कंपनी किसी भी महत्वपूर्ण मीडिया रिपोर्ट पर स्वेच्छा से भी स्पष्टीकरण जारी कर सकती है। SEBI ने इस आधार पर RIL और उसके दोनों अधिकारियों को नियमों के उल्लंघन का दोषी माना था, जिसे अब सुप्रीम कोर्ट ने भी बरकरार रखा है।
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