सूबे के डिप्टी सीएम डॉ. दिनेश शर्मा जनपद के प्रभारी हैं। 102 दिन बाद उन्हें ‘ऑक्सीजन’ की याद आई है। संक्रमण के चरम पर ताजनगरी के दामन पर श्री पारस अस्पताल में मॉकड्रिल के ऐेसे दाग लगे जिनसे सूबे में हलचल मच गई। महामारी के इस दौर में किसी की मांग का सिंदूर उजड़ गया, तो किसी ने पत्नी को खोया। कोई अपने पिता को बचाने के लिए गिड़गिड़ाता रहा, तो किसी ने अपने स्वजनों को अपनी आंखों के सामने तड़प-तड़प कर दम तोड़ते देखा।
उन खौफनाक दिनों से लोग उबरे भी नहीं पाए थे कि उन्हीं दिनों की स्याह हकीकत सात जून को श्री पारस अस्पताल संचालक के वीडियो में फिर सामने आ गई। 22 मरीजों की मौत के आरोप लगे। 16 मरीजों की मौत की पुष्टि की गई। फिर भी जांच में हॉस्पिटल को क्लीन चिट मिल गई। पीड़ितों के आंसुओं से वो दाग आज तक नहीं धुल सके। उन्हें अब सरकार से न्याय की दरकार है। अमर उजाला से पीड़ितों ने अपना दर्द साझा किया। कहा, हमने उस दौर में अपनों को खोया है, उपमुख्यमंत्री जी हमारी भी कुछ सुध लीजिए।
मेरी गोद में मेरे पति ने तोड़ा दम
अस्पतालों में ऑक्सीजन नहीं थी। मेरे पति को भर्ती नहीं किया। 23 अप्रैल को उन्हें लेकर मैं पूरे शहर में घूमती रही। कहीं ऑक्सीजन नहीं मिली। मेरी गोद में उन्होंने दम तोड़ा। उनकी जान बचाने के लिए मैंने अपनी जान की परवाह नहीं की। अपने मुंह से ऑक्सीजन देकर बचाने की लाख कोशिशें की, लेकिन बचा नहीं सकी। घर में वह अकेले कमाने वाले थे। उनकी मृत्यु के बाद पूरा परिवार आर्थिक संकट से जूझ रहा है। शासन, प्रशासन से कोई मदद नहीं मिली। मुझे न्याय चाहिए। - रेनू सिंघल, आवास विकास कॉलोनी
ऑक्सीजन की बदहाल व्यवस्था
ऑक्सीजन आपूर्ति की इतनी बदहाल व्यवस्था हमने कभी नहीं देखी। उन दिनों कहीं ऑक्सीजन नहीं मिली। मेरे पति रामबाग स्थित हॉस्पिटल में भर्ती थी। अस्पताल ने उन्हें जबरन डिस्चार्ज कर दिया। प्लांट पर पुलिस व प्रशासन का पहरा था। ऑक्सीजन सिलिंडर नहीं दिए। पुलिस, प्रशासन का बर्ताव बहुत खराब रहा। मैं खुद संक्रमित होने के बावजूद अपने पति की जान बचाने के लिए ऑक्सीजन को तीन दिन चक्कर लगाए। प्रशासन की लापरवाही का खामियाजा मरीजों ने भुगता है।
- पायल डाबर, कमला नगर
अफसरों के आगे इंसानियत शर्मसार
अफसरों के आगे इंसानियत भी शर्मसार हो गई। टेढ़ी बगिया प्लांट पर एक प्रशासनिक अधिकारी ने तीमारदार से सिलिंडर छीन लिए। उसे पैरों से ढकेला। मैं उस दिन अपने बहनोई के लिए ऑक्सीजन लेने उस प्लांट पर गया था। पुलिस ने लाठियां खदेड़ कर सिलिंडर के लिए खड़े लोगों को भगा दिया। ऐसे लोगों के खिलाफ कार्रवाई होनी चाहिए। सरकार से मांग है कि ऐसा फिर दोबारा न होना चाहिए। इसके लिए ठोस व्यवस्था बनाई जाए। ऑक्सीजन छीनने का अधिकार किसी को न दिया जाए।
- राजू सिंह, गांधी नगर
संकट में वीआईपी ने उठाया फायदा
20 से 30 अप्रैल तक शहर में विकराल ऑक्सीजन संकट था। उन दिनों आम लोगों को ऑक्सीजन नहीं मिल रही थी। 26 अप्रैल को मेरी मां की मौत ऑक्सीजन की कमी से श्री पारस में हुई थी। वीआईपी और अधिकारियों ने फायदा उठाया। अपने परिचितों के लिए ऑक्सीजन का इंतजाम कर दिया, लेकिन मरीजों की तीमारदारों पर रहम नहीं आया। सभी के लिए एक जैसी व्यवस्था होनी चाहिए। जनप्रितिनिधियों को जनता की बलि चढ़ाने का अधिकार नहीं है। डिप्टी सीएम से मांग है कि उन दिनों जो लापरवाहियां बरती गईं उनकी जांच कराएं। दोषियों के विरुद्ध कार्रवाई करें।
- प्रियंका सिंह, दहतोरा
आखिरी बार 20 मार्च को आए थे प्रभारी जी
जनपद के प्रभारी मंत्री डॉ. दिनेश शर्मा आखिरी बार 20 मार्च को आगरा आए थे। 103 दिन बाद गुरुवार को दोबारा आएंगे। तब उन्होंने सरकार के चार साल पूरे होने पर उपलब्धियां गिनाई थीं। सर्किट हाउस में समारोह हुआ था। फिर दोपहर में सांसद, विधायकों के साथ जिला योजना बैठक में भाग लिया था। गुरुवार को डिप्टी सीएम खंदौली स्वास्थ्य केंद्र पर निर्माणाधीन ऑक्सीजन प्लांट का निरीक्षण करेंगे। प्रशासन के मुताबिक लोकार्पण हो सकता है। यह प्लांट एक निजी बिजली कंपनी के फंडिंग से तैयार हो रहा है।
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सूबे के डिप्टी सीएम डॉ. दिनेश शर्मा जनपद के प्रभारी हैं। 102 दिन बाद उन्हें ‘ऑक्सीजन’ की याद आई है। संक्रमण के चरम पर ताजनगरी के दामन पर श्री पारस अस्पताल में मॉकड्रिल के ऐेसे दाग लगे जिनसे सूबे में हलचल मच गई। महामारी के इस दौर में किसी की मांग का सिंदूर उजड़ गया, तो किसी ने पत्नी को खोया। कोई अपने पिता को बचाने के लिए गिड़गिड़ाता रहा, तो किसी ने अपने स्वजनों को अपनी आंखों के सामने तड़प-तड़प कर दम तोड़ते देखा।
उन खौफनाक दिनों से लोग उबरे भी नहीं पाए थे कि उन्हीं दिनों की स्याह हकीकत सात जून को श्री पारस अस्पताल संचालक के वीडियो में फिर सामने आ गई। 22 मरीजों की मौत के आरोप लगे। 16 मरीजों की मौत की पुष्टि की गई। फिर भी जांच में हॉस्पिटल को क्लीन चिट मिल गई। पीड़ितों के आंसुओं से वो दाग आज तक नहीं धुल सके। उन्हें अब सरकार से न्याय की दरकार है। अमर उजाला से पीड़ितों ने अपना दर्द साझा किया। कहा, हमने उस दौर में अपनों को खोया है, उपमुख्यमंत्री जी हमारी भी कुछ सुध लीजिए।
मेरी गोद में मेरे पति ने तोड़ा दम
अस्पतालों में ऑक्सीजन नहीं थी। मेरे पति को भर्ती नहीं किया। 23 अप्रैल को उन्हें लेकर मैं पूरे शहर में घूमती रही। कहीं ऑक्सीजन नहीं मिली। मेरी गोद में उन्होंने दम तोड़ा। उनकी जान बचाने के लिए मैंने अपनी जान की परवाह नहीं की। अपने मुंह से ऑक्सीजन देकर बचाने की लाख कोशिशें की, लेकिन बचा नहीं सकी। घर में वह अकेले कमाने वाले थे। उनकी मृत्यु के बाद पूरा परिवार आर्थिक संकट से जूझ रहा है। शासन, प्रशासन से कोई मदद नहीं मिली। मुझे न्याय चाहिए। - रेनू सिंघल, आवास विकास कॉलोनी