कासगंज। जिले में चिकित्सकों की कमी से आए दिन समस्याओं का सामना करना पड़ता है। इसके चलते जिला अस्पताल के दिव्यांग कल्याण बोर्ड का पैनल अधूरा है, जो अलीगढ़ और आगरा के चिकित्सकों की बैसाखियों के सहारे है। पैनल पूरा न होने से दिव्यांगजन प्रमाण पत्र बनवाने के लिए भटकते हैं। जिला चिकित्सालय से उन्हें जांच के लिए आगरा और अलीगढ़ रेफर करना पड़ता है।
दिव्यांग कल्याण बोर्ड में पंाच विशेषज्ञ चिकित्सक होते हैं। जिसमें एक फिजिशियन, एक हड्डीरोग विशेषज्ञ, एक नेत्र रोग विशेषज्ञ, एक मानसिक रोग और एक नाक, कान, गला विशेषज्ञ चिकित्सक होता है। जिला अस्पताल में केवल हड्डी रोग विशेषज्ञ व नेत्र रोग विशेषज्ञ की तैनाती है, लेकिन अन्य विशेष चिकित्सकों की तैनाती नहीं है। जिसके कारण यहां दिव्यांगता का प्रमाण पत्र बनवाने के लिए दिव्यांगजन भटकने को मजबूर हैं। क्योंकि यहां दिव्यांग बोर्ड द्वारा उन्हें अलीगढ़ और आगरा मेडिकल कॉलेज के लिए रेफर करना पड़ता है। जिससे दिव्यांगजन भटकने को मजबूर होते हैं। तमाम दिव्यांगजन ऐसे हैं जिन्हें किसी का साथ नहीं मिलता तो वह अपना प्रमाण पत्र बनवाने के लिए परेशान हेाते हैं।
सप्ताह में सोमवार को किया जाता है दिव्यांगों का परीक्षण
जिला चिकित्सालय में प्रत्येक सोमवार को दिव्यांग कल्याण बोर्ड का शिविर लगता है। जिसमें दिव्यांगजन पहुंचते हैं, लेकिन उन दिव्यांगों को मायूसी मिलती है जिन्हें रेफर स्लिप दे दी जाती है। केवल हड्डी व नेत्रों से जुड़ी दिव्यांगता के प्रमाण पत्र ही मिल पाते हैं।
इन्हें लौटना पड़ा मायूस
जिला अस्पताल में अर्जुन अपने बेटे शिवम का दिव्यांग प्रमाण पत्र बनवाने पहुंचे थे। शिवम जन्म से ही मानसिक रूप से विक्षिप्त और अंगता का शिकार है। वह बोल भी नहीं पाता। अर्जुन जब बेटे के प्रमाण पत्र के लिए पहुंचा तो आगरा मानसिक आरोग्यशाला के लिए रेफर किया गया। उन्हें बताया गया कि यहां मानसिक रोग के चिकित्सक नहीं हैं।
पैरों से दिव्यांग वकील खान अपनी पत्नी नुसरत के प्रमाण पत्र के लिए पहुंचे। नुसरत जन्म से ही गूंगी बहरी हैं। नुसरत जब दिव्यांग कल्याण बोर्ड के सामने गईं तो चिकित्सकों ने उन्हें अलीगढ़ रेफर कर दिया। उन्हें बताया गया कि जिला अस्पताल में नाक, कान, गला विशेषज्ञ नहीं हैं और उनकी जांच अलीगढ़ में होगी।
कासगंज। जिले में चिकित्सकों की कमी से आए दिन समस्याओं का सामना करना पड़ता है। इसके चलते जिला अस्पताल के दिव्यांग कल्याण बोर्ड का पैनल अधूरा है, जो अलीगढ़ और आगरा के चिकित्सकों की बैसाखियों के सहारे है। पैनल पूरा न होने से दिव्यांगजन प्रमाण पत्र बनवाने के लिए भटकते हैं। जिला चिकित्सालय से उन्हें जांच के लिए आगरा और अलीगढ़ रेफर करना पड़ता है।
दिव्यांग कल्याण बोर्ड में पंाच विशेषज्ञ चिकित्सक होते हैं। जिसमें एक फिजिशियन, एक हड्डीरोग विशेषज्ञ, एक नेत्र रोग विशेषज्ञ, एक मानसिक रोग और एक नाक, कान, गला विशेषज्ञ चिकित्सक होता है। जिला अस्पताल में केवल हड्डी रोग विशेषज्ञ व नेत्र रोग विशेषज्ञ की तैनाती है, लेकिन अन्य विशेष चिकित्सकों की तैनाती नहीं है। जिसके कारण यहां दिव्यांगता का प्रमाण पत्र बनवाने के लिए दिव्यांगजन भटकने को मजबूर हैं। क्योंकि यहां दिव्यांग बोर्ड द्वारा उन्हें अलीगढ़ और आगरा मेडिकल कॉलेज के लिए रेफर करना पड़ता है। जिससे दिव्यांगजन भटकने को मजबूर होते हैं। तमाम दिव्यांगजन ऐसे हैं जिन्हें किसी का साथ नहीं मिलता तो वह अपना प्रमाण पत्र बनवाने के लिए परेशान हेाते हैं।
सप्ताह में सोमवार को किया जाता है दिव्यांगों का परीक्षण
जिला चिकित्सालय में प्रत्येक सोमवार को दिव्यांग कल्याण बोर्ड का शिविर लगता है। जिसमें दिव्यांगजन पहुंचते हैं, लेकिन उन दिव्यांगों को मायूसी मिलती है जिन्हें रेफर स्लिप दे दी जाती है। केवल हड्डी व नेत्रों से जुड़ी दिव्यांगता के प्रमाण पत्र ही मिल पाते हैं।
इन्हें लौटना पड़ा मायूस
जिला अस्पताल में अर्जुन अपने बेटे शिवम का दिव्यांग प्रमाण पत्र बनवाने पहुंचे थे। शिवम जन्म से ही मानसिक रूप से विक्षिप्त और अंगता का शिकार है। वह बोल भी नहीं पाता। अर्जुन जब बेटे के प्रमाण पत्र के लिए पहुंचा तो आगरा मानसिक आरोग्यशाला के लिए रेफर किया गया। उन्हें बताया गया कि यहां मानसिक रोग के चिकित्सक नहीं हैं।
पैरों से दिव्यांग वकील खान अपनी पत्नी नुसरत के प्रमाण पत्र के लिए पहुंचे। नुसरत जन्म से ही गूंगी बहरी हैं। नुसरत जब दिव्यांग कल्याण बोर्ड के सामने गईं तो चिकित्सकों ने उन्हें अलीगढ़ रेफर कर दिया। उन्हें बताया गया कि जिला अस्पताल में नाक, कान, गला विशेषज्ञ नहीं हैं और उनकी जांच अलीगढ़ में होगी।