शरद पूर्णिमा पर ताजमहल के रात्रि दर्शन के लिए टिकटों की मारामारी मची है। मंगलवार को भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के फतेहाबाद रोड स्थित कार्यालय पर सैलानियों की भारी भीड़ पहुंच गई। 250 लोगों के लिए टिकट की बुकिंग होनी थी लेकिन 650 से अधिक लोगों की मांग आ गई। भीड़ ज्यादा होने पर एएसआई ने टिकट काउंटर को बंद दिया।
ये है चमकी कथा
सफेद संगमरमर से तामीर ताजमहल पर जब शरद पूर्णिमा पर चांद की दूधिया रोशनी पड़ती है तो इसका सौंदर्य और निखर उठता है। ताज की पच्चीकारी में रंगीन कीमती पत्थर लगे हैं जो चांद की रोशनी एक खास एंगल पर पड़ने पर चमकते हैं। इन नगीनों का चमकना ‘चमकी’ के नाम से चर्चित हो गया। वर्ष 1984 में ताजमहल के रात में बंद होने से पहले शरद पूर्णिमा पर पूरी रात चमकी का मेला लगता था, जो पांच नहीं बल्कि सात दिनों तक चलता था।
वर्ष 1984 में ताजमहल को रात में सुरक्षा कारणों से बंद करने से पहले चमकी का मेला शरद पूर्णिमा पर लगता था। इसमें लाखों लोग रात भर ताज घूमने पहुंचते थे। भीड़ के प्रबंधन के लिए ताजमहल में यमुना नदी की तरफ अस्थायी सीढ़ियों का निर्माण फ्रीगंज से रेलवे के स्लीपर लाकर किया जाता था। रॉयल गेट की ओर से संगमरमर की सीढ़ियों से प्रवेश और यमुना किनारे अस्थायी सीढ़ियों से पर्यटक उतरकर नीचे चमेली फर्श पर आते थे।
शरद पूर्णिमा पर 1984 से पहले लगने वाला चमकी का मेला लोगों की यादों में अब भी बसा है। ताज पर पूरी रात लगने वाले इस मेले ने सात जन्मों के बंधन में भी लोगों को बांधा है। तब केवल मेला नहीं, बल्कि परिचय सम्मेलन के तौर पर भी चमकी मेले ने दिलों को जोड़ा है। शादी के लिए कन्या को देखने के लिए लोग चमकी मेले पहुंचते थे, जहां बिना किसी औपचारिकता के परिवार के साथ घूमने आई युवतियों को देखकर रिश्ते भी तय हुए। ताज पूर्वी गेट पर एंपोरियम संचालक रहे अभिनव जैन के मुताबिक चमकी मेले में लोग परिवारों के साथ आते थे। सर्दी में सहालग से पहले रिश्ते तय करने के लिए यह मेला बेहतर जगह था, जहां कोई औपचारिकता नहीं थी। गोविंद अग्रवाल के मुताबिक ताजगंज में उनके मित्रों के घर वह रात में इस चमकी मेले के लिए पहुंचते थे। युवाओं की संख्या इस मेले में ज्यादा होती थी।
ताजमहल की दीवानगी: चांद की मद्धम रोशनी में चमका ताज, रात्रि दर्शन में पहुंचे पर्यटकों के खिले चेहरे
विस्तार
शरद पूर्णिमा पर ताजमहल के रात्रि दर्शन के लिए टिकटों की मारामारी मची है। मंगलवार को भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के फतेहाबाद रोड स्थित कार्यालय पर सैलानियों की भारी भीड़ पहुंच गई। 250 लोगों के लिए टिकट की बुकिंग होनी थी लेकिन 650 से अधिक लोगों की मांग आ गई। भीड़ ज्यादा होने पर एएसआई ने टिकट काउंटर को बंद दिया।
ये है चमकी कथा
सफेद संगमरमर से तामीर ताजमहल पर जब शरद पूर्णिमा पर चांद की दूधिया रोशनी पड़ती है तो इसका सौंदर्य और निखर उठता है। ताज की पच्चीकारी में रंगीन कीमती पत्थर लगे हैं जो चांद की रोशनी एक खास एंगल पर पड़ने पर चमकते हैं। इन नगीनों का चमकना ‘चमकी’ के नाम से चर्चित हो गया। वर्ष 1984 में ताजमहल के रात में बंद होने से पहले शरद पूर्णिमा पर पूरी रात चमकी का मेला लगता था, जो पांच नहीं बल्कि सात दिनों तक चलता था।
वर्ष 1984 में ताजमहल को रात में सुरक्षा कारणों से बंद करने से पहले चमकी का मेला शरद पूर्णिमा पर लगता था। इसमें लाखों लोग रात भर ताज घूमने पहुंचते थे। भीड़ के प्रबंधन के लिए ताजमहल में यमुना नदी की तरफ अस्थायी सीढ़ियों का निर्माण फ्रीगंज से रेलवे के स्लीपर लाकर किया जाता था। रॉयल गेट की ओर से संगमरमर की सीढ़ियों से प्रवेश और यमुना किनारे अस्थायी सीढ़ियों से पर्यटक उतरकर नीचे चमेली फर्श पर आते थे।
शरद पूर्णिमा पर 1984 से पहले लगने वाला चमकी का मेला लोगों की यादों में अब भी बसा है। ताज पर पूरी रात लगने वाले इस मेले ने सात जन्मों के बंधन में भी लोगों को बांधा है। तब केवल मेला नहीं, बल्कि परिचय सम्मेलन के तौर पर भी चमकी मेले ने दिलों को जोड़ा है। शादी के लिए कन्या को देखने के लिए लोग चमकी मेले पहुंचते थे, जहां बिना किसी औपचारिकता के परिवार के साथ घूमने आई युवतियों को देखकर रिश्ते भी तय हुए। ताज पूर्वी गेट पर एंपोरियम संचालक रहे अभिनव जैन के मुताबिक चमकी मेले में लोग परिवारों के साथ आते थे। सर्दी में सहालग से पहले रिश्ते तय करने के लिए यह मेला बेहतर जगह था, जहां कोई औपचारिकता नहीं थी। गोविंद अग्रवाल के मुताबिक ताजगंज में उनके मित्रों के घर वह रात में इस चमकी मेले के लिए पहुंचते थे। युवाओं की संख्या इस मेले में ज्यादा होती थी।
ताजमहल की दीवानगी: चांद की मद्धम रोशनी में चमका ताज, रात्रि दर्शन में पहुंचे पर्यटकों के खिले चेहरे