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हजारों परिवारों को पालने वाले ताल सलोना पर भूमाफियाओं की नजर
सगड़ी। तहसील क्षेत्र के अजमतगढ़ के आसपास के दर्जनों गांवों की हजारों की आबादी को रोजी-रोटी देने वाले ताल सलोना का दायरा सिकुड़ता जा रहा है। दशकों से भूमाफियाओं की नजर इसकी जमीनों पर गड़ी है। जिसका परिणाम है यह विशाल ताल धीरे-धीरे सिकुड़ते जा रहा है।वहीं सबकुछ जानते हुए भी प्रशासन ने मौन साध रखा है। सगड़ी तहसील से मात्र चार किमी पूरब में स्थित ताल सलोना जनपद ही नहीं प्रदेश में अपना गौरवशाली स्थान रखता है। लगभग 977 एकड़ हेक्टेयर में फैला ताल दशकों पूर्व तक क्षेत्र की सुख, समृद्धि का साधन था। ताल के आसपास स्थित धनछुला, मसोना, काजी की डिघवनिया, इसरहा, भरौली, अजमतगढ़, ढ़ेलुवा बसंतपुर, नरहन, सुखमदत्तनगर, भरौली, पारनकुंडा आदि कई दर्जनों गांव के लोग रोजी-रोटी चलाते हैं। ताल के किनारे लगभग एक हजार मल्लाहों का परिवार मछली मारकर परिवार की जीविका चलाता है। ताल सलोना से निकलने वाला लाखों रुपये का कमलगट्टा, सिरसी, सुथनी और तिन्नी का चावल लोगों की समृद्धि का साधन था। वर्षों पहले अजमतगढ़ स्टेट के लोग इसके सुंदरीकरण के लिए निजी तौर पर लाखों लाख रुपये खर्च करते थे। ताल सलोना के किनारे मां दुर्गा मंदिर, गणेश मंदिर, राधा-कृष्ण की मनोहारी प्रतिमा, ताल के बीचोबीच काली का मंदिर और कई जगहों पर स्नानागार और सीढ़ियां बनाकर सुंदर और रमणीय बनाया गया था। लेकिन वर्तमान समय में जीर्ण शीर्ण हो चुका है। इस ताल में कभी पक्षियों का कलरव, हाथियों के झुंड की अठखेलियां, मछलियों का तैरना, विदेशी पक्षियों की मधुर आवाज क्षेत्र के लोगों को बरबस आकर्षित किया करता था। इन विहंगम दृश्यों की अनुभूति के चलते ही लोगों ने इसे सलोना ताल का नाम दिया था। आज ताल सलोना के जमीन पर माफियाओं ने कब्जा कर लिया है। आसपास बसे लोगों को डर है कि ऐसे ही जमीन पर कब्जा होता गया तो ताल का अस्तित्व ही समाप्त हो जाएगा। हजारों लोगों की रोजी-रोटी और क्षेत्र के पर्यावरण को खतरा पैदा हो जाएगा। हजारों मल्लाहों के जीविका का साधन है ताल सलोना। सगड़ी। तहसील क्षेत्र के अजमतगढ़ स्थित ताल सलोना हजारों मल्लाहों के रोजी-रोटी का साधन है। सुबह से ही काफी संख्या में मल्लाह ढोंगी ( छोटी नाव) लेकर ताल सलोना में मछली मारने के लिए निकल जाते हैं। जाल के माध्यम से ताल में मछली मारते हैं, और जो मछली मिलती है उसको लाकर बाजारों में बेचते हैं। जिससे उनकी रोजी-रोटी चलती है। ठंड शुरू होते ही काफी संख्या में विदेशी पक्षी भी ताल सलोना में आते हैं और गर्मी शुरू होते ही वापस चले जाते हैं। मामले में सगड़ी नायब तहसीलदार मयंक मिश्रा ने बताया कि ताल सलोना की कीमती जमीनों पर कब्जा करने की मंशा किसी की भी सफल नहीं होगी। अगर किसी ने कब्जा करने की कोशिश की तो उसके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी। अगर किसी ने कब्जा किया है तो उसे खाली कराया जाएगा।
सगड़ी। तहसील क्षेत्र के अजमतगढ़ के आसपास के दर्जनों गांवों की हजारों की आबादी को रोजी-रोटी देने वाले ताल सलोना का दायरा सिकुड़ता जा रहा है। दशकों से भूमाफियाओं की नजर इसकी जमीनों पर गड़ी है। जिसका परिणाम है यह विशाल ताल धीरे-धीरे सिकुड़ते जा रहा है।वहीं सबकुछ जानते हुए भी प्रशासन ने मौन साध रखा है। सगड़ी तहसील से मात्र चार किमी पूरब में स्थित ताल सलोना जनपद ही नहीं प्रदेश में अपना गौरवशाली स्थान रखता है। लगभग 977 एकड़ हेक्टेयर में फैला ताल दशकों पूर्व तक क्षेत्र की सुख, समृद्धि का साधन था। ताल के आसपास स्थित धनछुला, मसोना, काजी की डिघवनिया, इसरहा, भरौली, अजमतगढ़, ढ़ेलुवा बसंतपुर, नरहन, सुखमदत्तनगर, भरौली, पारनकुंडा आदि कई दर्जनों गांव के लोग रोजी-रोटी चलाते हैं। ताल के किनारे लगभग एक हजार मल्लाहों का परिवार मछली मारकर परिवार की जीविका चलाता है।
ताल सलोना से निकलने वाला लाखों रुपये का कमलगट्टा, सिरसी, सुथनी और तिन्नी का चावल लोगों की समृद्धि का साधन था। वर्षों पहले अजमतगढ़ स्टेट के लोग इसके सुंदरीकरण के लिए निजी तौर पर लाखों लाख रुपये खर्च करते थे। ताल सलोना के किनारे मां दुर्गा मंदिर, गणेश मंदिर, राधा-कृष्ण की मनोहारी प्रतिमा, ताल के बीचोबीच काली का मंदिर और कई जगहों पर स्नानागार और सीढ़ियां बनाकर सुंदर और रमणीय बनाया गया था। लेकिन वर्तमान समय में जीर्ण शीर्ण हो चुका है। इस ताल में कभी पक्षियों का कलरव, हाथियों के झुंड की अठखेलियां, मछलियों का तैरना, विदेशी पक्षियों की मधुर आवाज क्षेत्र के लोगों को बरबस आकर्षित किया करता था। इन विहंगम दृश्यों की अनुभूति के चलते ही लोगों ने इसे सलोना ताल का नाम दिया था। आज ताल सलोना के जमीन पर माफियाओं ने कब्जा कर लिया है। आसपास बसे लोगों को डर है कि ऐसे ही जमीन पर कब्जा होता गया तो ताल का अस्तित्व ही समाप्त हो जाएगा। हजारों लोगों की रोजी-रोटी और क्षेत्र के पर्यावरण को खतरा पैदा हो जाएगा।
हजारों मल्लाहों के जीविका का साधन है ताल सलोना।
सगड़ी। तहसील क्षेत्र के अजमतगढ़ स्थित ताल सलोना हजारों मल्लाहों के रोजी-रोटी का साधन है। सुबह से ही काफी संख्या में मल्लाह ढोंगी ( छोटी नाव) लेकर ताल सलोना में मछली मारने के लिए निकल जाते हैं। जाल के माध्यम से ताल में मछली मारते हैं, और जो मछली मिलती है उसको लाकर बाजारों में बेचते हैं। जिससे उनकी रोजी-रोटी चलती है। ठंड शुरू होते ही काफी संख्या में विदेशी पक्षी भी ताल सलोना में आते हैं और गर्मी शुरू होते ही वापस चले जाते हैं। मामले में सगड़ी नायब तहसीलदार मयंक मिश्रा ने बताया कि ताल सलोना की कीमती जमीनों पर कब्जा करने की मंशा किसी की भी सफल नहीं होगी। अगर किसी ने कब्जा करने की कोशिश की तो उसके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी। अगर किसी ने कब्जा किया है तो उसे खाली कराया जाएगा।
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