UP: गांव की मिट्टी में चमक रही हैं बेटियों की उम्मीदें, विश्व कप की जीत ने बदली सोच
महिला विश्वकप की ऐतिहासिक जीत ने बागपत की गलियों में नई सोच और नई उम्मीदें जगा दी हैं। अब खेतों और गलियों में पिता खुद बेटियों को क्रिकेट सिखा रहे हैं। पुराना बल्ला, उधड़ी गेंद और मिट्टी के मैदान पर बेटियां भारत लिखे सपने बुन रहीं हैं।
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बल्ला टूटा है, गेंद की सीवनें उधड़ी हैं, लेकिन हौसले अब पहले से कहीं ज्यादा मजबूत हैं। भारतीय महिला क्रिकेट टीम की ऐतिहासिक विश्वकप जीत ने बागपत की मिट्टी में नई उम्मीदें बो दी हैं।
अब गांवों की सुबह में क्रिकेट के शॉट्स और शाम में ‘आउट’ की गूंज सुनाई देती है।
पहले जहां लड़कियों के लिए खेलों को लेकर झिझक थी, अब पिता खुद बेटियों को अभ्यास के लिए मैदान तक छोड़ने लगे हैं। खेतों और गलियों में खेलती ये बेटियां बिना कोचिंग, बिना ब्रांडेड किट के अपने दम पर टीम इंडिया का सपना देख रही हैं।
लौहड्डा, वाजिदपुर, सिरसली, बड़ौत, जौनमाना, लुहारी, छपरौली और हजूराबाद गढ़ी जैसे गांवों में अब पिता खुद बेटियों के कोच बन गए हैं। सिरसली की अनु, लौहड्डा की सिया, वाजिदपुर की पूनम, बड़ौत की सोनम तोमर, छपरौली की रूबी, जौनमाना की अंशिका, हजूराबाद गढ़ी की रुचिका और दिव्या शर्मा जैसी दर्जनों बेटियां हर दिन पुराने बल्ले और टेनिस बॉल से अभ्यास करती दिखती हैं। इनके पास ब्रांडेड किट नहीं, लेकिन दिल में ‘भारत’ लिखे सपने जरूर हैं।
एकेडमी में बढ़ रही बेटियों की संख्या
विश्वकप की जीत ने न सिर्फ गांवों में उत्साह जगाया है बल्कि खेल की दिशा भी बदल दी है। नगर और ग्रामीण क्षेत्रों में चल रही क्रिकेट एकेडमियों में बेटियों का नामांकन बढ़ा है। विश्वकप के बाद करीब 50 से अधिक बेटियों ने पंजीकरण कराया है।
पहले कहा जाता था कि क्रिकेट तो लड़कों का खेल है, लेकिन जब महिला टीम ने वर्ल्ड कप जीता तो हमारी सोच बदल गई। अब मैं खुद अपनी बेटी को बल्ला पकड़ाना सिखाता हूं। डॉ. सत्येंद्र तोमर, वाजिदपुर
हर क्षेत्र में लड़कियां बराबरी कर रही हैं। मैंने भी अपनी बेटी सलोनी को क्रिकेट खिलाना शुरू कर दिया है। मोनिका शर्मा
अगर प्रशासन थोड़ा सहयोग करे तो बागपत की बेटियां भी टीम इंडिया तक पहुंच सकती हैं। -सुधीर आर्य, क्रिकेट कोच
अमित कुमार, क्रीड़ाधिकारी बागपत ने बताया कि, महिला क्रिकेटरों के लिए विशेष शिविर और चयन प्रतियोगिताओं की योजना तैयार की जा रही है। शासन को जल्द प्रस्ताव भेजा जाएगा ताकि ग्रामीण स्तर पर बेटियों को मंच मिल सके।