AQI: बरेली में सिविल लाइंस का एक्यूआई 282... ऑरेंज जोन में आया शहर; इन मरीजों की बढ़ सकती है तकलीफ
बरेली के आवासीय क्षेत्रों में वायु प्रदूषण सामान्य से ज्यादा दर्ज हो रहा है। सोमवार रात दस बजे सिविल लाइंस में वायु गुणवत्ता सूचकांक 282 दर्ज किया गया, जो ऑरेंज जोन में है। दूषित हवा से सांस के मरीजों की तकलीफ बढ़ सकती है।
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बरेली में सर्दी के मौसम में व्यावसायिक क्षेत्रों की हवा सांस पर भारी पड़ रही है। सोमवार रात दस बजे सिविल लाइंस में वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआई) 282 और राजेंद्रनगर में 112 दर्ज किया गया। प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के ऑनलाइन आंकड़ों के अनुसार, एक्यूआई का स्तर ऑरेंज जोन में है। यानी ऐसी हवा में लंबे समय तक सांस लेने से फेफड़ों पर दुष्प्रभाव होने की आशंका है। सांस के पुराने मरीजों की तकलीफ बढ़ सकती है।
चेस्ट फिजिशियन डॉ. पुनीत अग्रवाल के मुताबिक, गर्मियों में धूल उड़ती है, लेकिन जल्द नीचे बैठ जाती है। इससे एक्यूआई का स्तर भी सामान्य रहता है। सर्दी में हवा में नमी का स्तर 90 फीसदी से ज्यादा होता है। वाहनों के धुएं, एनजीटी के नियमों को दरकिनार कर चल रहे निर्माण कार्यों से उठते धूल के कण हवा में तैरते हैं। वे काफी देर तक हवा में ही टिके रहते हैं। पीएम 2.5 और पीएम 10 का स्तर बढ़ने पर सांस के साथ दूषित हवा शरीर में प्रवेश करती है। यह गले और फेफडों में एलर्जी की वजह बनते हैं। इससे सूखी खांसी होती है। ऐसी हवा दमा या फाइब्रोसिस से पीड़ित लोगों की तकलीफ बढ़ाती है।
दिनभर के संयुक्त डाटा पर होता है एक्यूआई का आकलन
क्षेत्रीय प्रदूषण नियंत्रण अधिकारी चंद्रेश कुमार का तर्क है कि 24 घंटे में कई बार एक्यूआई में उतार-चढ़ाव होता है। व्यावसायिक क्षेत्रों में वाहनों की आवाजाही अधिक रहती है। लिहाजा, एक्यूआई अधिक हो सकता है। सोमवार को दर्ज दिनभर की एक्यूआई रिपोर्ट का आकलन किया जाएगा। इसके बाद एक्यूआई की सटीक जानकारी होगी। रविवार को शहर का एक्यूआई 97 दर्ज हुआ था।
हवा सुधारने में सातवें पायदान पर बरेली
पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय की ओर से बीते दिनों जारी 130 शहरों की रिपोर्ट में हवा प्रदूषण मुक्त बनाने में बरेली सातवें पायदान पर है। नगर निगम के अधिकारियों ने बताया था कि राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम के तहत शहर में 96 किमी फुटपाथ पक्का किया गया। शहर की सड़कों के किनारे, डिवाइडरों पर पौधरोपण हुआ। एंटी स्मॉग गन, वाटर स्प्रिंकलर का प्रयोग हो रहा है। मियावाकी पद्धति से पौधरोपण व अन्य तरीके अपनाने से धूल के स्तर में प्रभावी कमी आई। इससे शहर वायु प्रदूषण मुक्त हुआ।