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Ghazipur News: गंगा की लहरों पर अठखेलियां कर रहे विदेशी परिंदे
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सैदपुर गंगा घाट पर मौजूद साइबेरियन सी गल का झुंड। संवाद
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औडिहार। सर्दियों की दस्तक के साथ ही सैदपुर क्षेत्र स्थित गंगा नदी पर एक बार फिर विदेशी मेहमानों का आगमन शुरु हो गया है। हजारों किलोमीटर दूर रूस के साइबेरिया से आए साइबेरियन सी गल पक्षियों के झुंड इन दिनों गंगा के जल पर कलरव बिखेर रहे हैं। इनके आगमन से घाटों की रौनक बढ़ गई है और लोग सुबह-शाम इन परिंदों को दाना डालते हुए फोटो और सेल्फी लेने में व्यस्त नजर आ रहे हैं। क्षेत्रीय वन अधिकारी सैदपुर रमेश कुमार मौर्या ने बताया कि इन पछियों की संख्या अभी और बढ़ेगी और हम इनके सुरक्षा के दृष्टिकोण से भी काफी सतर्क हैं ताकि इनके अवैध शिकार को भी रोका जा सके।
घाटों पर बढ़ी रौनक, बेसन सेव की बिक्री तेज-सैदपुर के गंगा घाटों पर सुबह और शाम लोगों की अच्छी-खासी भीड़ जुट रही है। लोग अपने बच्चों के साथ पहुंचकर हाथों से इन पक्षियों को बेसन दाल की सेव खिलाते हैं। दुकानों पर यह सेव इन दिनों सबसे ज्यादा बिक रही है।
पांच महीने का प्रवास, अप्रैल में होगी वापसी-हर वर्ष की तरह इस बार भी ये प्रवासी पक्षी नवंबर के पहले पखवारे में पहुंचे हैं और लगभग पांच महीने तक यहीं प्रवास करेंगे। अप्रैल के अंत तक तापमान बढ़ने के साथ ये अपने मूल आवास साइबेरिया लौट जाते हैं। वापसी से पहले हजारों की संख्या में ये पक्षी ऊंची गर्म हवाओं पर गोल-गोल चक्कर लगाते हैं और फिर एक साथ उड़ान भरते हुए साइबेरिया की ओर निकल जाते हैं।
8 हजार किमी का तय करते हैं सफर-साइबेरिया में ठंड के दिनों में तापमान माइनस 50 डिग्री सेल्सियस तक गिर जाता है। बर्फ की मोटी परतों में जीवन असंभव हो जाता है, इसलिए ये पक्षी 8 हजार किलोमीटर से ज्यादा दूरी तय कर हिमालय की ऊंची चोटियों को पार करते हुए भारत पहुंचते हैं।
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पांच महीने का प्रवास, अप्रैल में होगी वापसी-हर वर्ष की तरह इस बार भी ये प्रवासी पक्षी नवंबर के पहले पखवारे में पहुंचे हैं और लगभग पांच महीने तक यहीं प्रवास करेंगे। अप्रैल के अंत तक तापमान बढ़ने के साथ ये अपने मूल आवास साइबेरिया लौट जाते हैं। वापसी से पहले हजारों की संख्या में ये पक्षी ऊंची गर्म हवाओं पर गोल-गोल चक्कर लगाते हैं और फिर एक साथ उड़ान भरते हुए साइबेरिया की ओर निकल जाते हैं।
8 हजार किमी का तय करते हैं सफर-साइबेरिया में ठंड के दिनों में तापमान माइनस 50 डिग्री सेल्सियस तक गिर जाता है। बर्फ की मोटी परतों में जीवन असंभव हो जाता है, इसलिए ये पक्षी 8 हजार किलोमीटर से ज्यादा दूरी तय कर हिमालय की ऊंची चोटियों को पार करते हुए भारत पहुंचते हैं।