जीका प्रभावित लोगों में गर्भवती महिलाओं की संख्या चार हो गई है। फेथफुलगंज की महिला बुधवार को जीका संक्रमित पाई गई थी। जांच में उसके गर्भवती होने की पुष्टि हुई है। वहीं गुरुवार को जीका संक्रमितों की रिपोर्ट नहीं आई है। स्वास्थ्य विभाग की सौ टीमों ने तीन किमी क्षेत्र में सर्वे जारी रखा। इसके साथ ही 194 लोगों के सैंपल लिए गए। अब तक 4350 लोगों के सैंपल जांच के लिए भेजे जा चुके हैं। 17 लोगों के निगेटिव होने के बाद जीका एक्टिव केस की संख्या 91 बची है।
जीका के 20 फीसदी संक्रमितों को तो बुखार भी नहीं आता। 90 फीसदी संक्रमितों को जान का खतरा नहीं हैं, लेकिन जो पुराने गुर्दे, लिवर, डायबिटीज के रोगी हैं उनकी स्थिति गंभीर हो सकती है। वे मच्छरों से बचाव करें। यह बात सीनियर फिजिशियन डॉ. नंदिनी रस्तोगी ने आईएमए सभागार में पत्रकारों को बताई।
उन्होंने कहा कि जीका वायरस में पहला बदलाव अफ्रीका में आया। इस बदलाव के बाद वायरस का दुष्प्रभाव गर्भस्थ शिशु पर होने लगा। डॉ. रस्तोगी ने बताया कि जीका डेंगू से कम खतरनाक है। इसके साथ ही यह जानलेवा नहीं है। गर्भवती महिलाओं को गर्भधारण के 12 सप्ताह तक अधिक सतर्कता की जरूरत है।
इस अवधि शिशु के आर्गेनोजेनेसिस की होती है, उसमें शिशु को नुकसान होता है। महिला को गर्भपात भी हो सकता है और मरा बच्चा भी पैदा हो सकता है। ऐसे में गर्भवती महिलाएं मच्छरदानी लगाएं। महिलाओं का सेकेंड लेवल अल्ट्रासाउंड कराना जरूरी है।
आईएमए अध्यक्ष डॉ. बृजेंद्र शुक्ला ने बताया कि जीका एडीज एजिप्टाई से होता है। गर्भस्थ शिशुओं के लिए यह खतरनाक है। इससे शिशु में विकृतियां हो सकती हैं। इसलिए एहतियात जरूरी है। इस मौके पर नगर स्वास्थ्य अधिकारी डॉ. अमित सिंह गौर, आईएमए सचिव डॉ. देवज्योति देवराय आदि रहे।
जीका प्रभावित लोगों में गर्भवती महिलाओं की संख्या चार हो गई है। फेथफुलगंज की महिला बुधवार को जीका संक्रमित पाई गई थी। जांच में उसके गर्भवती होने की पुष्टि हुई है। वहीं गुरुवार को जीका संक्रमितों की रिपोर्ट नहीं आई है। स्वास्थ्य विभाग की सौ टीमों ने तीन किमी क्षेत्र में सर्वे जारी रखा। इसके साथ ही 194 लोगों के सैंपल लिए गए। अब तक 4350 लोगों के सैंपल जांच के लिए भेजे जा चुके हैं। 17 लोगों के निगेटिव होने के बाद जीका एक्टिव केस की संख्या 91 बची है।
जीका के 20 फीसदी संक्रमितों को तो बुखार भी नहीं आता। 90 फीसदी संक्रमितों को जान का खतरा नहीं हैं, लेकिन जो पुराने गुर्दे, लिवर, डायबिटीज के रोगी हैं उनकी स्थिति गंभीर हो सकती है। वे मच्छरों से बचाव करें। यह बात सीनियर फिजिशियन डॉ. नंदिनी रस्तोगी ने आईएमए सभागार में पत्रकारों को बताई।
उन्होंने कहा कि जीका वायरस में पहला बदलाव अफ्रीका में आया। इस बदलाव के बाद वायरस का दुष्प्रभाव गर्भस्थ शिशु पर होने लगा। डॉ. रस्तोगी ने बताया कि जीका डेंगू से कम खतरनाक है। इसके साथ ही यह जानलेवा नहीं है। गर्भवती महिलाओं को गर्भधारण के 12 सप्ताह तक अधिक सतर्कता की जरूरत है।
इस अवधि शिशु के आर्गेनोजेनेसिस की होती है, उसमें शिशु को नुकसान होता है। महिला को गर्भपात भी हो सकता है और मरा बच्चा भी पैदा हो सकता है। ऐसे में गर्भवती महिलाएं मच्छरदानी लगाएं। महिलाओं का सेकेंड लेवल अल्ट्रासाउंड कराना जरूरी है।
आईएमए अध्यक्ष डॉ. बृजेंद्र शुक्ला ने बताया कि जीका एडीज एजिप्टाई से होता है। गर्भस्थ शिशुओं के लिए यह खतरनाक है। इससे शिशु में विकृतियां हो सकती हैं। इसलिए एहतियात जरूरी है। इस मौके पर नगर स्वास्थ्य अधिकारी डॉ. अमित सिंह गौर, आईएमए सचिव डॉ. देवज्योति देवराय आदि रहे।