मेरठ शहर विधानसभा सीट के वोटरों का मिजाज कुछ अलग है। कैलाश प्रकाश और डॉ. लक्ष्मीकांत वाजपेयी जैसे दिग्गजों को विधानसभा भेजने वाले यहां के मतदाताओं की नब्ज पर हाथ रखना आसान नहीं। कांग्रेस को इस सीट पर 1985 के बाद से जीत नहीं मिली तो भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष रहते डॉ. लक्ष्मीकांत वाजपेयी को 2017 में यहां हार का सामना करना पड़ा। रफीक अंसारी ने वाजपेयी को हरा कर यह सीट पहली बार सपा की झोली में डाली। बसपा को कभी यहां जीत नहीं मिल सकी।
कैलाश प्रकाश शहर सीट से दो बार विधायक रहे। जगदीश शरण रस्तोगी, मोहनलाल कपूर, मंजूर अहमद, हाजी अखलाक, जयनारायण शर्मा, डॉ. लक्ष्मीकांत बाजपेयी यहां से विधायक रहे। डॉ. लक्ष्मीकांत वाजपेयी यहां से आठ बार विधानसभा चुनाव लड़े और चार बार जीते भी हैं। वाजपेयी को पहली बार यहां 1989 में जीत मिली थी। जनता दल के टिकट पर 1993 में हाजी अखलाक ने डॉ. लक्ष्मीकांत को हरा दिया। 1996 और 2002 में बाजपेयी ने लगातार दो बार चुनाव जीता। इसके बाद 2007 में यूडीएफ से चुनाव लड़ते हुए हाजी याकूब ने बाजपेयी को हराया। 2012 में बाजपेयी चौथी बार शहर सीट से विधायक चुने गए। वर्ष 2017 में वाजपेयी को हराने वाले रफीक अंसारी को सपा ने यहां दोबारा प्रत्याशी बनाया है।
मुस्लिम वोटर निर्णायक भूमिका में
2022 के चुनाव में इस सीट पर एक बार फिर से सीधा मुकाबला सपा और भाजपा के बीच होने का अनुमान है। इस सीट पर तीन लाख 11 हजार 727 मतदाता हैं। मेरठ की अन्य छह विधानसभा सीटों की तुलना में मतदाताओं की संख्या के लिहाज से यह सबसे छोटी सीट है। इस सीट पर करीब डेढ़ लाख मुस्लिम निर्णायक भूमिका निभाते हैं। जबकि वैश्य व ब्राह्मण भी करीब एक लाख वोटर भाजपा को मजबूत करता है। त्यागी, पंजाबी, जाट, दलित सहित अन्य बिरादरी भी हैं।
ऐतिहासिक धरोहर इस सीट को बनाती हैं खास
मेरठ शहर विधानसभा क्षेत्र का बड़ा हिस्सा पुराना शहर है। यहां पर कई ऐतिहासिक धरोहर घंटाघर, नौचंदी, चंडी देवी मंदिर और बालेमिंया की मजार है। मान्यता है कि चंडी देवी मंदिर में रावण की पत्नी मंदोदरी पूजा करने आती थी। टाउन हाल और उसकी प्राचीन इमारत व पुस्तकालय इतिहास के साक्षी हैं। सूरजकुंड पार्क, शहर कोतवाली स्थित शाही जामा मस्जिद, जली कोठी, ब्रह्मपुरी, भूमिया का पुल, खैरनगर, पुरानी तहसील इस क्षेत्र की पहचान हैं।
यह भी पढ़ें: जावेद हबीब की माफी को बताया ड्रामा: ब्यूटीशियन पूजा बोली- सजा दिलाकर ही लूंगी दम, पश्चिमी यूपी में बढ़ रहा आक्रोश
कैंची, खेल उद्योग व बुनकर यहां की पहचान
कैंची, खेल व लघु उद्योग और बुनकर समाज इस सीट की पहचान हैं। यहां की कैंची देश-विदेश में एक्सपोर्ट होती हैं। तो वहीं सूरजकुंड स्पोर्ट्स मार्केट और बुनकर आर्थिक मजबूती का आधार है।
यह भी पढ़ें: कौन है जावेद हबीब: लंदन तक पहुंचे... पर अपने ही इलाके में फंस गए, थामा था भाजपा का दामन, खूब प्रसिद्ध है परिवार
जब अपने प्रतिद्वंदी के घर आशीर्वाद के लिए पहुंचे मंजूर अहमद
उत्तर प्रदेश के एक पूर्व मंत्री ने बताया कि 1980 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस से मंजूर अहमद व जनसंघ से मोहनलाल कपूर आमने-सामने थे। इसके बावजूद मंजूर अहमद अपने प्रतिद्वंद्वी मोहनलाल कपूर के घर वोट मांगने पहुंचे। जहां उन्होंने मोहनलाल कपूर की माता से जीत के लिए सिर्फ सिर पर हाथ रखवाया और 10 रुपये चंदे के तौर पर भी लिए। मंजूर अहमद ने लगातार दूसरी बार चुनाव में जीत दर्ज की थी। मरहूम मंजूर अहमद, पूर्व कैबिनेट मंत्री शाहिद मंजूर के पिता थे। इसके बाद 1985 के चुनाव में कांग्रेस के जयनारायण शर्मा के पैर में फ्रेक्चर आ गया। समर्थकों ने उन्हें गोद में उठाकर चुनाव लड़ाया और वो जीते।
2017 में रफीक ने वाजपेयी को बडे़ अंतर से हराया
रफीक अंसारी (सपा) - 103217 वोट (28, 769)
डॉ. लक्ष्मीकांत बाजपेयी (भाजपा) - 74,448 वोट
पंकज जौली (बसपा) - 12,636 वोट
ज्ञानेंद्र शर्मा (रालोद) - 667 वोट
मेरठ शहर विधानसभा सीट पर वर्तमान में कुल वोटर - तीन लाख 11 हजार 727
- महिला वोटर - 1 लाख 69 हजार 259
- पुरुष वोटर - 1 लाख 42 हजार 445
- थर्ड जेंडर - 23 वोट
शहर सीट से कब कौन जीता
चुनावी वर्ष विजेता पार्टी
2017 रफीक अंसारी सपा
2012 डॉ. लक्ष्मीकांत बाजपेयी भाजपा
2007 हाजी याकूब कुरैशी यूडीएफ
2002 डॉ. लक्ष्मीकांत बाजपेयी भाजपा
1996 डॉ. लक्ष्मीकांत बाजपेयी भाजपा
1993 हाजी अखलाक कुरैशी जनता दल
1989 डॉ. लक्ष्मीकांत बाजपेयी भाजपा
1985 जय नारायण शर्मा कांग्रेस
1980 मंजूर अहमद कांग्रेस
1977 मंजूर अहमद कांग्रेस
1974 मोहनलाल कपूर जनसंघ
1969 मोहनलाल कपूर जनसंघ
1967 मोहनलाल कपूर जनसंघ
1962 जगदीश शरण रस्तोगी कांग्रेस
1957 कैलाश प्रकाश भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस
1951 कैलाश प्रकाश भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस
विस्तार
मेरठ शहर विधानसभा सीट के वोटरों का मिजाज कुछ अलग है। कैलाश प्रकाश और डॉ. लक्ष्मीकांत वाजपेयी जैसे दिग्गजों को विधानसभा भेजने वाले यहां के मतदाताओं की नब्ज पर हाथ रखना आसान नहीं। कांग्रेस को इस सीट पर 1985 के बाद से जीत नहीं मिली तो भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष रहते डॉ. लक्ष्मीकांत वाजपेयी को 2017 में यहां हार का सामना करना पड़ा। रफीक अंसारी ने वाजपेयी को हरा कर यह सीट पहली बार सपा की झोली में डाली। बसपा को कभी यहां जीत नहीं मिल सकी।
कैलाश प्रकाश शहर सीट से दो बार विधायक रहे। जगदीश शरण रस्तोगी, मोहनलाल कपूर, मंजूर अहमद, हाजी अखलाक, जयनारायण शर्मा, डॉ. लक्ष्मीकांत बाजपेयी यहां से विधायक रहे। डॉ. लक्ष्मीकांत वाजपेयी यहां से आठ बार विधानसभा चुनाव लड़े और चार बार जीते भी हैं। वाजपेयी को पहली बार यहां 1989 में जीत मिली थी। जनता दल के टिकट पर 1993 में हाजी अखलाक ने डॉ. लक्ष्मीकांत को हरा दिया। 1996 और 2002 में बाजपेयी ने लगातार दो बार चुनाव जीता। इसके बाद 2007 में यूडीएफ से चुनाव लड़ते हुए हाजी याकूब ने बाजपेयी को हराया। 2012 में बाजपेयी चौथी बार शहर सीट से विधायक चुने गए। वर्ष 2017 में वाजपेयी को हराने वाले रफीक अंसारी को सपा ने यहां दोबारा प्रत्याशी बनाया है।
मुस्लिम वोटर निर्णायक भूमिका में
2022 के चुनाव में इस सीट पर एक बार फिर से सीधा मुकाबला सपा और भाजपा के बीच होने का अनुमान है। इस सीट पर तीन लाख 11 हजार 727 मतदाता हैं। मेरठ की अन्य छह विधानसभा सीटों की तुलना में मतदाताओं की संख्या के लिहाज से यह सबसे छोटी सीट है। इस सीट पर करीब डेढ़ लाख मुस्लिम निर्णायक भूमिका निभाते हैं। जबकि वैश्य व ब्राह्मण भी करीब एक लाख वोटर भाजपा को मजबूत करता है। त्यागी, पंजाबी, जाट, दलित सहित अन्य बिरादरी भी हैं।
ऐतिहासिक धरोहर इस सीट को बनाती हैं खास
मेरठ शहर विधानसभा क्षेत्र का बड़ा हिस्सा पुराना शहर है। यहां पर कई ऐतिहासिक धरोहर घंटाघर, नौचंदी, चंडी देवी मंदिर और बालेमिंया की मजार है। मान्यता है कि चंडी देवी मंदिर में रावण की पत्नी मंदोदरी पूजा करने आती थी। टाउन हाल और उसकी प्राचीन इमारत व पुस्तकालय इतिहास के साक्षी हैं। सूरजकुंड पार्क, शहर कोतवाली स्थित शाही जामा मस्जिद, जली कोठी, ब्रह्मपुरी, भूमिया का पुल, खैरनगर, पुरानी तहसील इस क्षेत्र की पहचान हैं।
यह भी पढ़ें: जावेद हबीब की माफी को बताया ड्रामा: ब्यूटीशियन पूजा बोली- सजा दिलाकर ही लूंगी दम, पश्चिमी यूपी में बढ़ रहा आक्रोश