अपनी जिंदगी की परवाह न करते हुए अपनों को बचाने के लिए यदि कोई व्यक्ति अपना अंग दान करे तो वह किसी मसीहा से कम नहीं होता है। शहर में भी दो ऐसे उदाहरण हैं, जिन्होंने अंगदान कर अपनों की जिंदगी बचाई। एक परिवार में मां ने बेटे के लिए तो दूसरे में बहन ने भाई के लिए किडनी दान कर जीवन दान दिया।
मां ने बेटे को दिया जीवनदान
अहमद बाग निवासी संजय तिवारी के बेटे शुभम तिवारी को वर्ष 2015 में बुखार सहित कुछ समस्याएं आईं। इलाज के बाद भी सुधार नहीं होने पर शुभम को हायर सेंटर दिखाया गया, जहां पता चला कि शुभम की जन्म से ही एक किडनी है और वो भी खराब हो चुकी है।
चिकित्सकों ने किडनी ट्रांसप्लांट की सलाह दी। ऐसे में मां सरोज तिवारी ने अपने बेटे को एक किडनी देकर उसे जीवनदान दिया। आज मां और बेटा दोनों एक-एक किडनी पर हैं और स्वस्थ हैं। शुभम का कहना है कि मां सरोज ने उसे एक नहीं, दो बार जीवन दिया है, जिसका कर्ज वह कभी नहीं चुका सकेगा।
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भाई के लिए मसीहा बनकर आई बहन
शिव विहार निवासी एवं भाजपा नेता अमित वर्मा 48 साल के हैं। करीब दो वर्ष पहले उनकी दोनों किडनी खराब हो गई थी। चिकित्सकों ने किडनी ट्रांसप्लांट की सलाह दी। ऐसे में यमुनानगर ससुराल में रह रही बहन 42 वर्षीय शालिनी वर्मा भाई के लिए मसीहा बनकर आई और स्वेच्छा से भाई को किडनी दान कर नया जीवन दिया।
खास बात यह है कि अमित वर्मा के बहनोई भी किडनी देने को तैयार थे, लेकिन ब्लड ग्रुप नहीं मिलने तथा अन्य समस्याओं की वजह से किडनी नहीं दे सके। अमित वर्मा का कहना है कि उनकी बहन ने उनके लिए जो किया है यह उनके किसी जन्म के अच्छे कर्मों का फल है। वर्तमान में अमित वर्मा और बहन शालिनी वर्मा एक-एक किडनी पर जीवन जी रहे हैं और स्वस्थ हैं।
अंगदान का यह है नियम
एसबीडी जिला अस्पताल के वरिष्ठ फिजीशियन डॉ. अनिल वोहरा ने बताया कि अंगदान दो तरह से होता है। पहले में जीवित व्यक्ति यानी लाइव डोनर अपनी एक किडनी, एक फेफड़ा, लिवर और आंतों का एक हिस्सा दान कर सकता है, लेकिन यह अंगदान वह सिर्फ अपने परिजन या किसी करीबी रिश्तेदार को ही कर सकता है। यदि किसी दूसरे व्यक्ति का अंग चाहिए तो ऐसा उसकी मौत के बाद ही हो सकता है। दूसरे जिंदा व्यक्ति का अंग अन्य व्यक्ति को नहीं दिया जा सकता है।
विस्तार
अपनी जिंदगी की परवाह न करते हुए अपनों को बचाने के लिए यदि कोई व्यक्ति अपना अंग दान करे तो वह किसी मसीहा से कम नहीं होता है। शहर में भी दो ऐसे उदाहरण हैं, जिन्होंने अंगदान कर अपनों की जिंदगी बचाई। एक परिवार में मां ने बेटे के लिए तो दूसरे में बहन ने भाई के लिए किडनी दान कर जीवन दान दिया।
मां ने बेटे को दिया जीवनदान
अहमद बाग निवासी संजय तिवारी के बेटे शुभम तिवारी को वर्ष 2015 में बुखार सहित कुछ समस्याएं आईं। इलाज के बाद भी सुधार नहीं होने पर शुभम को हायर सेंटर दिखाया गया, जहां पता चला कि शुभम की जन्म से ही एक किडनी है और वो भी खराब हो चुकी है।
चिकित्सकों ने किडनी ट्रांसप्लांट की सलाह दी। ऐसे में मां सरोज तिवारी ने अपने बेटे को एक किडनी देकर उसे जीवनदान दिया। आज मां और बेटा दोनों एक-एक किडनी पर हैं और स्वस्थ हैं। शुभम का कहना है कि मां सरोज ने उसे एक नहीं, दो बार जीवन दिया है, जिसका कर्ज वह कभी नहीं चुका सकेगा।
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