वाराणसी। चुनावी मौसम में हर वर्ग के लोग सियासी दलों के तरफ से जारी किए जा रहे घोषणा पत्र में अपने लिए संभावनाए तलाश रहे हैं। युवा रोजगार, व्यापारी बाजार तो आम जान महंगाई से राहत चाहता है। बजरडीहा बाजार स्थित एक चाय की अड़ी पर सोमवार को बुनकर कारीगरों एवं व्यापारियों ने चुनाव पर जोरदार चर्चा की। बातचीत के दौरान अब्दुल अली ने कहा कि अमां यार सरकार क कउनो काम सही ना भइल। घर बनावे क पईसा त मिलीस लेकिन सरकारी दफ्तर क बहुते चक्कर लगावे के पड़ीस। उनके बगल में बैठे अब्दुल रहीम बोल पडे़ इनके त घर बनावेला पईसा त मिल गयल लेकिन बहुते लोगन क फारम भरले क बाद भी नाहीं मिलीस हौ। चाय क पुरवा पकड़े मेहासुद्दीन झल्लाते हुए बोले पहिले हम साड़ी बुने क काम करत रहीस जेकरे से हमार रोजी रोटी चलत रहीस, बाकी करउना आवे के बाद से सब खतम हो गयल सरकार कउनो व्यवस्था ना कईलस। शादी के समय में पहिले लोग साड़ी के बुकिंग करत रहले बाकी अब कोई ना आवत हौ।
-व्यापारी पहिले से ही परेशान हउअन कुछ रोजगार शुरू कईलन तबै फिर से करउना क लहर आ गयल। व्यापारी क त जीयल खायल मुश्किल भयल हौ।- मो. इरफान अंसारी
- रोजगार ना मिलत हौ। सरकार गरीबन पर ध्यान ना देत हौ। साड़ियन क मांग करउना में बहुते खतम हो गयल हौ। बहुते लोगन आपन धंधा छोड़का मजदूरी करे ला मजबूर हवन।- नासीर अंसारी
- केतने लोगन क पैसा डूब गयल हौ। सरकार बनारसी साड़ी बनावे वालन लोगन क कउनो मदद ना कइलस। व्यापारी डर क जीयत हौ कहीं पूरा रोजगार ही चौपट न हो जाय। - शकील अहमद
-जब से हथकरघा फैक्टरी बंद भयल हव सब बेरोजगार घुमत हौ। घागा क दाम 400 से 700 रुपया किलो हो गयल हौ। मजबूरी में साड़ी 500 रुपया में बेचेक पड़त हौ। - अब्दुल कलाम आजाद
वाराणसी। चुनावी मौसम में हर वर्ग के लोग सियासी दलों के तरफ से जारी किए जा रहे घोषणा पत्र में अपने लिए संभावनाए तलाश रहे हैं। युवा रोजगार, व्यापारी बाजार तो आम जान महंगाई से राहत चाहता है। बजरडीहा बाजार स्थित एक चाय की अड़ी पर सोमवार को बुनकर कारीगरों एवं व्यापारियों ने चुनाव पर जोरदार चर्चा की। बातचीत के दौरान अब्दुल अली ने कहा कि अमां यार सरकार क कउनो काम सही ना भइल। घर बनावे क पईसा त मिलीस लेकिन सरकारी दफ्तर क बहुते चक्कर लगावे के पड़ीस। उनके बगल में बैठे अब्दुल रहीम बोल पडे़ इनके त घर बनावेला पईसा त मिल गयल लेकिन बहुते लोगन क फारम भरले क बाद भी नाहीं मिलीस हौ। चाय क पुरवा पकड़े मेहासुद्दीन झल्लाते हुए बोले पहिले हम साड़ी बुने क काम करत रहीस जेकरे से हमार रोजी रोटी चलत रहीस, बाकी करउना आवे के बाद से सब खतम हो गयल सरकार कउनो व्यवस्था ना कईलस। शादी के समय में पहिले लोग साड़ी के बुकिंग करत रहले बाकी अब कोई ना आवत हौ।
-व्यापारी पहिले से ही परेशान हउअन कुछ रोजगार शुरू कईलन तबै फिर से करउना क लहर आ गयल। व्यापारी क त जीयल खायल मुश्किल भयल हौ।- मो. इरफान अंसारी
- रोजगार ना मिलत हौ। सरकार गरीबन पर ध्यान ना देत हौ। साड़ियन क मांग करउना में बहुते खतम हो गयल हौ। बहुते लोगन आपन धंधा छोड़का मजदूरी करे ला मजबूर हवन।- नासीर अंसारी
- केतने लोगन क पैसा डूब गयल हौ। सरकार बनारसी साड़ी बनावे वालन लोगन क कउनो मदद ना कइलस। व्यापारी डर क जीयत हौ कहीं पूरा रोजगार ही चौपट न हो जाय। - शकील अहमद
-जब से हथकरघा फैक्टरी बंद भयल हव सब बेरोजगार घुमत हौ। घागा क दाम 400 से 700 रुपया किलो हो गयल हौ। मजबूरी में साड़ी 500 रुपया में बेचेक पड़त हौ। - अब्दुल कलाम आजाद