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टूटी दीवारें, लीक करती छत: ऐसे स्कूलों में कैसे बनेगा बच्चों का भविष्य? बदहाल शिक्षा व्यवस्था बनी पलायन की वजह

अमर उजाला नेटवर्क, अल्मोड़ा Published by: हीरा मेहरा Updated Tue, 02 Dec 2025 02:01 PM IST
सार

ताड़ीखेत क्षेत्र के प्राथमिक विद्यालय कारचूली, ख्यूशालकोट सहित कई विद्यालयों की बदहाल स्थिति देखकर कोई भी दंग रह जाएगा। टूटी दीवारें, जर्जर कक्षाएं, बैठने की समुचित व्यवस्था तक नहीं, ऐसे हालातों में बच्चों के भविष्य की कल्पना भी दर्दनाक लगती है। 

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The poor primary education system in the mountains has become a major reason for migration
इस तरह बदहाल है प्राथमिक विद्यालय कारचूली। संवाद - फोटो : अमर उजाला
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विस्तार
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रानीखेत के ताड़ीखेत क्षेत्र के प्राथमिक विद्यालय कारचूली, ख्यूशालकोट सहित कई विद्यालयों की बदहाल स्थिति देखकर कोई भी दंग रह जाएगा। टूटी दीवारें, जर्जर कक्षाएं, बैठने की समुचित व्यवस्था तक नहीं, ऐसे हालातों में बच्चों के भविष्य की कल्पना भी दर्दनाक लगती है। सवाल उठता है कि जब गांवों के स्कूल ही इस अवस्था में हों तो पहाड़ों से हो रहा पलायन आखिर कैसे रुके।

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अल्मोड़ा जिले में 1196 प्राथमिक विद्यालय हैं जिनमें अधिकांश में बुनियादी सुविधाओं का घोर अभाव है। कई स्कूलों में शौचालय, पानी की व्यवस्था ठीक नहीं है। बारिश के दिनों में कमरे पानी टपकने से उपयोग में ही नहीं आ पाते। कारचूली, ख्यूशालकोट जैसे कई विद्यालयों में छात्र संख्या घटने की सबसे बड़ी वजह यही बदहाली है। गांवों में खाली होती बस्तियां इस बात का प्रमाण है कि शिक्षा की बढ़ावा दे रही है। अभिभावक शहरों की ओर भाग रहे कमजोरी सीधे-सीधे पलायन को बच्चों के भविष्य की खातिर
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हैं। सरकारी दावों के बावजूद ग्रामीण शिक्षा की जमीन पर तस्वीर बेहद निराशाजनक है। 

पलायन रोकने के लिए प्राथमिक शिक्षा जरूरी
पहाड़ों में पलायन का सबसे बड़ा कारण शिक्षा की कमजोर व्यवस्था है। यदि प्राथमिक शिक्षा को मजबूत नहीं किया गया तो गांवों का खाली होना और पहाड़ों का उजड़ना जारी रहेगा। कारचूली जैसे विद्यालयों की बदहाली इस बड़ी समस्या का सिर्फ एक उदाहरण है। ग्रामीणों का मानना है कि जब तक शिक्षकों की नियुक्ति, आधारभूत ढांचे और शिक्षा की गुणवत्ता पर गंभीरता से काम नहीं होगा, तब तक पलायन थमने की उम्मीद करना मुश्किल है।

बच्चों को नहीं मिल पाती गुणवत्तापूर्ण शिक्षा
ग्रामीण क्षेत्रों में एकल शिक्षक की तैनाती के चलते शिक्षक किसी भी कक्षा पर पूरा ध्यान नहीं दे पाते। हर कक्षा का स्तर अलग होता है उनकी सीखने की क्षमता और आवश्यकताएं भी अलग होती हैं। ऐसे में एक ही शिक्षक सभी कक्षाओं को एक साथ संभालता है तो स्वाभाविक रूप से बच्चों को वह ध्यान नहीं मिल पाता जिसकी उन्हें आवश्यकता होती है।

वैकल्पिक व्यवस्था न होने से पढ़ाई हो रही प्रभावित
जिले के कई स्कूलों में तो स्थिति और भी गंभीर है। शिक्षक को विभागीय बैठकों में जाना हो या किसी कारणवश वह स्कूल से अनुपस्थित हो तब बच्चों के लिए कोई वैकल्पिक व्यवस्था मौजूद नहीं रहती। परिणामस्वरूप पढ़ाई पूरी तरह ठप हो जाती है। लगातार इस तरह की बाधाएं अभिभावकों को यह सोचने पर मजबूर कर देती हैं कि बच्चों का भविष्य गांवों में सुरक्षित नहीं है।

विद्यालयों के सुधार कार्यों की सूचना उच्चाधिकारियों को भेजी गई है। साथ ही समय-समय पर रिक्त पदों की जानकारी भी विभाग को भेजी जाती है ताकि नियुक्तियों की प्रक्रिया समय पर आगे बढ़ सके।
-शिक्षा अधिकारी ताड़ीखेत हरेंद्र साह, खंड

स्कूल की हालत इतनी खराब थी कि बच्चे क्लास में बैठने से घबराते थे। टीन की छत उखड़ी हुई, फर्श टूटा हुआ और दीवारों में दरारें हैं। यह देखकर बच्चों को स्कूल भेजना बंद कर दिया और आखिरकार शहर का रुख किया।
- त्रिलोक महरा, पलायन अल्मोड़ा, गांव ख्यूशालकोट

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