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Pauri News: उत्तराखंड को भूतहा गांव बनने से बचाना है तो विचार बदलो
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उत्तराखंड को भूतहा गांव बनने से बचाना है तो विचार बदलो
रिवर्स पलायन तभी रुकेगा जब गांवों में शहरों जैसा ठोस आधार होगा: विशेषज्ञ
संवाद न्यूज एजेंसी
रिवर्स पलायन के लिए जरूरी है ठोस आधार, सिर्फ भावनात्मक अपील नहीं : विशेषज्ञ
संवाद न्यूज एजेंसी
देवप्रयाग। केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, श्री रघुनाथ कीर्ति परिसर में “विकास, पलायन और भुतहा गांव पर संवाद” विषय पर आयोजित व्याख्यान में विशेषज्ञों ने कहा कि उत्तराखंड में रिवर्स पलायन को सफल बनाने के लिए भावनात्मक अपील नहीं, बल्कि रोजगार, शिक्षा और स्वास्थ्य जैसी सुविधाओं का ठोस आधार जरूरी है।
मुख्य वक्ता व रिवर्स पलायन पर लंबे समय से अभियान चला रहे देवेंद्र बुड़ाकोटी ने कहा कि इसकी असफलता का सबसे बड़ा उदाहरण कोरोना काल है, जब गांव लौटे लोग दोबारा शहर चले गए। उन्होंने सरकारों के साथ स्थानीय लोगों को भी पलायन का जिम्मेदार ठहराते हुए कहा कि यह असुविधाओं और दिखावे की प्रवृत्ति के कारण बढ़ा है। उन्होंने कहा कि आज कई स्कूल बच्चों से खाली हैं और गांव निर्जन बन चुके हैं।
बुड़ाकोटी ने कहा कि गांवों में सड़कों का निर्माण तभी सार्थक है, जब वहां लोगों की आवाजाही हो। उन्होंने प्रवासियों से वर्ष में एक बार किसी भी बहाने गांव लौटने की अपील की और खेती की चकबंदी को आवश्यक बताया ताकि युवा उत्पादन कार्य में जुड़ सकें।
कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रो. पीवीबी सुब्रह्मण्यम ने की। उन्होंने कहा कि हिमाचल की तरह उत्तराखंड भी कृषि, बागवानी व पर्यटन से आत्मनिर्भर बन सकता है। पलायन को रोकने के लिए विचारधारा में बदलाव आवश्यक है।
कार्यक्रम का संचालन डॉ. सोमेश बहुगुणा ने किया। इस अवसर पर डॉ. शैलेंद्र नारायण कोटियाल, डॉ. अनिल कुमार, डॉ. वीरेंद्र सिंह बर्त्वाल, डॉ. सुरेश शर्मा, डॉ. सुशील बडोनी, डॉ. मनीषा आर्या, डॉ. सुमिति सैनी, डॉ. अरविंद सिंह गौर, पंकज कोटियाल व पायल पाठक उपस्थित रहे।
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संवाद न्यूज एजेंसी
रिवर्स पलायन के लिए जरूरी है ठोस आधार, सिर्फ भावनात्मक अपील नहीं : विशेषज्ञ
संवाद न्यूज एजेंसी
देवप्रयाग। केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, श्री रघुनाथ कीर्ति परिसर में “विकास, पलायन और भुतहा गांव पर संवाद” विषय पर आयोजित व्याख्यान में विशेषज्ञों ने कहा कि उत्तराखंड में रिवर्स पलायन को सफल बनाने के लिए भावनात्मक अपील नहीं, बल्कि रोजगार, शिक्षा और स्वास्थ्य जैसी सुविधाओं का ठोस आधार जरूरी है।
मुख्य वक्ता व रिवर्स पलायन पर लंबे समय से अभियान चला रहे देवेंद्र बुड़ाकोटी ने कहा कि इसकी असफलता का सबसे बड़ा उदाहरण कोरोना काल है, जब गांव लौटे लोग दोबारा शहर चले गए। उन्होंने सरकारों के साथ स्थानीय लोगों को भी पलायन का जिम्मेदार ठहराते हुए कहा कि यह असुविधाओं और दिखावे की प्रवृत्ति के कारण बढ़ा है। उन्होंने कहा कि आज कई स्कूल बच्चों से खाली हैं और गांव निर्जन बन चुके हैं।
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बुड़ाकोटी ने कहा कि गांवों में सड़कों का निर्माण तभी सार्थक है, जब वहां लोगों की आवाजाही हो। उन्होंने प्रवासियों से वर्ष में एक बार किसी भी बहाने गांव लौटने की अपील की और खेती की चकबंदी को आवश्यक बताया ताकि युवा उत्पादन कार्य में जुड़ सकें।
कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रो. पीवीबी सुब्रह्मण्यम ने की। उन्होंने कहा कि हिमाचल की तरह उत्तराखंड भी कृषि, बागवानी व पर्यटन से आत्मनिर्भर बन सकता है। पलायन को रोकने के लिए विचारधारा में बदलाव आवश्यक है।
कार्यक्रम का संचालन डॉ. सोमेश बहुगुणा ने किया। इस अवसर पर डॉ. शैलेंद्र नारायण कोटियाल, डॉ. अनिल कुमार, डॉ. वीरेंद्र सिंह बर्त्वाल, डॉ. सुरेश शर्मा, डॉ. सुशील बडोनी, डॉ. मनीषा आर्या, डॉ. सुमिति सैनी, डॉ. अरविंद सिंह गौर, पंकज कोटियाल व पायल पाठक उपस्थित रहे।