सरकारी योजनाओं और करोड़ों रुपये की लागत से बनने वाले शैक्षणिक भवनों से विद्यार्थियों को बेहतर सुविधाओं की उम्मीद होती है, लेकिन पाटोदी के राजकीय महाविद्यालय का नया भवन इस उम्मीद पर पानी फेरता नजर आ रहा है। डेढ़ साल पहले बना यह कॉलेज भवन आज खुद अपनी हालत पर आंसू बहा रहा है। लाखों-करोड़ों के बजट के बावजूद भवन की दीवारें दरारों से भरी हैं, टाइलें टूट चुकी हैं, बिजली के खुले तार लटक रहे हैं और परिसर में हर वक्त किसी बड़ी दुर्घटना की आशंका बनी रहती है।
डेढ़ साल पुराना भवन, लेकिन हालत वर्षों पुरानी जैसी
पांच साल पहले तत्कालीन सरकार ने पाटोदी में उच्च शिक्षा के प्रसार के उद्देश्य से 5 करोड़ रुपये की लागत से कॉलेज भवन निर्माण की स्वीकृति दी थी। इस राशि में न केवल भवन, बल्कि सड़क, बिजली-पानी की सुविधा, चारदीवारी और खेल मैदान जैसी मूलभूत संरचनाएं भी शामिल थीं। मगर वास्तविकता में इन सुविधाओं का हाल बेहद निराशाजनक है।
निर्माण के मात्र डेढ़ वर्ष के भीतर दीवारों पर बड़ी-बड़ी दरारें उभर आई हैं। कई हिस्सों में प्लास्टर झड़ चुका है और छतों की सीलन ने हालात को और बदतर बना दिया है। फर्श की टाइलें उखड़ चुकी हैं और बरसात के दौरान परिसर में जलभराव आम बात बन चुकी है।
भवन की सुरक्षा पर बड़ा सवाल: खुले तार और बिना ढक्कन के टांके
छात्रों ने बताया कि कॉलेज परिसर में लगे बिजली के तार खुले लटक रहे हैं, जिनमें करंट प्रवाहित हो रहा है। कई बार छात्रों को झटके भी लग चुके हैं। पानी के लिए बने टांके पर ढक्कन तक नहीं लगाया गया है, जिससे पानी दूषित होने का खतरा बना रहता है। टांके में पानी भरने के लिए मोटर नहीं लगाई गई है और परिसर में कोई स्थायी टंकी भी नहीं है। परिणामस्वरूप बाथरूम और वॉशरूम की पाइपलाइनें सिर्फ दिखावे के लिए लगी हैं। इन हालातों में पढ़ाई के साथ-साथ छात्रों की सुरक्षा भी खतरे में है।
छात्र बोले पांच करोड़ खर्च हुए, लेकिन सुविधाएं शून्य
- कॉलेज के छात्रों ने आक्रोश व्यक्त करते हुए कहा कि भवन निर्माण में घटिया सामग्री का उपयोग किया गया है। क्लासरूम में पंखे काम नहीं करते, दीवारों पर सफेदी उतर चुकी है और खिड़कियों के शीशे टूटे पड़े हैं।
- छात्र अशोक प्रजापत ने कहा, “यह भवन मानकों के अनुसार नहीं बनाया गया है। जगह-जगह खुले तार, टूटी दीवारें और टाइलें हादसे को दावत दे रही हैं। विभाग को तुरंत मरम्मत और सुधार का कार्य शुरू करना चाहिए।”
- वहीं छात्र सुरेन्द्र का कहना था, “5 करोड़ रुपए खर्च कर ऐसा ढांचा खड़ा किया गया है जो अभी से जर्जर हो गया है। जिम्मेदार अधिकारियों और ठेकेदारों के खिलाफ कार्रवाई जरूरी है, ताकि भविष्य में ऐसी लापरवाही दोबारा न हो।”
चारदीवारी अधूरी, परिसर में अतिक्रमण और झाड़ियां
कॉलेज की चारदीवारी अधूरी पड़ी है। कई हिस्सों में दीवारें ध्वस्त हो चुकी हैं, जिससे परिसर में आवारा पशु और बाहरी लोग आसानी से प्रवेश कर जाते हैं। परिसर के चारों ओर बबूल की झाड़ियां फैली हुई हैं, जिनसे सांप-बिच्छू जैसे जंतु खतरा पैदा करते हैं। खेल मैदान का अभाव और डामर सड़क न होने से छात्रों को रोजाना धूलभरे रास्ते से होकर कॉलेज पहुंचना पड़ता है।
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गुणवत्ता पर उठे सवाल, जांच की मांग तेज
स्थानीय लोगों का कहना है कि करोड़ों की लागत से बने इस भवन में जिस तरह की खामियां सामने आ रही हैं, वह गंभीर चिंता का विषय है। निर्माण एजेंसी, ठेकेदार और अधिकारियों की मिलीभगत से कार्य में भारी लापरवाही हुई है। ग्रामीणों ने मांग की है कि सरकार उच्च स्तरीय तकनीकी जांच कराए और जिम्मेदार अधिकारियों को कटघरे में खड़ा करें। साथ ही भवन की तत्काल मरम्मत कराकर छात्रों की सुरक्षा सुनिश्चित करें।
शिक्षा का मंदिर या हादसे का इंतजार?
पाटोदी का यह सरकारी कॉलेज फिलहाल शिक्षा का मंदिर कम और हादसे की प्रतीक्षा करता ढांचा ज्यादा नजर आ रहा है। कक्षाओं में पढ़ाई से ज्यादा चर्चा जर्जर दीवारों और झूलते तारों की होती है। सरकार और विभाग यदि समय रहते संज्ञान नहीं लेते, तो किसी भी दिन यहां कोई गंभीर दुर्घटना घट सकती है। जहां एक ओर सरकारें ग्रामीण अंचलों में उच्च शिक्षा के प्रसार के लिए करोड़ों रुपये खर्च कर रही हैं, वहीं दूसरी ओर निर्माण कार्यों में गुणवत्ता की अनदेखी इस प्रयास को पंगु बना रही है। पाटोदी कॉलेज का यह मामला केवल एक उदाहरण नहीं, बल्कि पूरे तंत्र पर सवाल खड़े करता है आखिर कौन है इस लापरवाही का जिम्मेदार और छात्रों की सुरक्षा की गारंटी कौन देगा?