Urdu Poetry: तमाम खेल मोहब्बत में इंतिज़ार का है

अमर उजाला

Mon, 8 September 2025

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सच बात मान लीजिए चेहरे पे धूल है
इल्ज़ाम आइनों पे लगाना फ़ुज़ूल है

~अंजुम रहबर

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वो चाँदनी का बदन ख़ुशबुओं का साया है
बहुत अज़ीज़ हमें है मगर पराया है

~बशीर बद्र

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मेरे जैसे बन जाओगे जब इश्क़ तुम्हें हो जाएगा
दीवारों से सर टकराओगे जब इश्क़ तुम्हें हो जाएगा

~सईद राही

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तमाम जिस्म को आँखें बना के राह तको
तमाम खेल मोहब्बत में इंतिज़ार का है

~मुनव्वर राना
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जब भी मिलती है मुझे अजनबी लगती क्यूँ है 
ज़िंदगी रोज़ नए रंग बदलती क्यूँ है 

~शहरयार
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सर से पा तक वो गुलाबों का शजर लगता है 
बा-वज़ू हो के भी छूते हुए डर लगता है 

~बशीर बद्र
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वो एक रात की गर्दिश में इतना हार गया
लिबास पहने रहा और बदन उतार गया

~हसीब सोज़

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Urdu Poetry: वाक़िफ़ कहाँ ज़माना हमारी उड़ान से

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