Urdu Poetry: काटी हैं हम ने यूँ भी दिसम्बर की सर्दियाँ

अमर उजाला

Mon, 16 December 2024

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उम्मीद कर चुका था नए साल से बहुत
इक और ज़ख़्म दे के दिसम्बर चला गया

~ ख़ान जांबाज़

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बहुत से ग़म दिसम्बर में दिसम्बर के नहीं थे
उसे भी जून का ग़म था मगर रोया दिसम्बर में

~उमैर क़ुरैशी

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दिसम्बर की सर्दी है उस के ही जैसी
ज़रा सा जो छू ले बदन काँपता है

~ अमित शर्मा मीत
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यादों की शाल ओढ़ के आवारा-गर्दियाँ
काटी हैं हम ने यूँ भी दिसम्बर की सर्दियाँ

~ अज्ञात
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इरादा था जी लूँगा तुझ से बिछड़ कर
गुज़रता नहीं इक दिसम्बर अकेले

~ ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर
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पिछले बरस तुम साथ थे मेरे और दिसम्बर था
महके हुए दिन-रात थे मेरे और दिसम्बर था

~फ़रह शाहिद

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हर दिसम्बर इसी वहशत में गुज़ारा कि कहीं
फिर से आँखों में तिरे ख़्वाब न आने लग जाएँ

~ रेहाना रूही
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Urdu Poetry: हम एक बार तिरी आरज़ू भी खो देते

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