अमर उजाला
Mon, 16 December 2024
उम्मीद कर चुका था नए साल से बहुत
इक और ज़ख़्म दे के दिसम्बर चला गया
~ ख़ान जांबाज़
बहुत से ग़म दिसम्बर में दिसम्बर के नहीं थे
उसे भी जून का ग़म था मगर रोया दिसम्बर में
~उमैर क़ुरैशी
पिछले बरस तुम साथ थे मेरे और दिसम्बर था
महके हुए दिन-रात थे मेरे और दिसम्बर था
~फ़रह शाहिद
Urdu Poetry: हम एक बार तिरी आरज़ू भी खो देते