Diwali 2025: उजाला हर तरफ़ है इस किनारे उस किनारे क्या

अमर उजाला काव्य डेस्क, नई दिल्ली  

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सभी के दीप सुंदर हैं हमारे क्या तुम्हारे क्या
उजाला हर तरफ़ है इस किनारे उस किनारे क्या
- हफ़ीज़ बनारसी   

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जो सुनते हैं कि तेरे शहर में दसहरा है
हम अपने घर में दिवाली सजाने लगते हैं
- जमुना प्रसाद राही 

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रौशनी आधी इधर आधी उधर
इक दिया रक्खा है दीवारों के बीच
- उबैदुल्लाह अलीम 

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खिड़कियों से झाँकती है रौशनी
बत्तियाँ जलती हैं घर घर रात में
- मोहम्मद अल्वी 

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Urdu Poetry: शाम होने को है अब घर की तरफ़ लौट चलो

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