अमर उजाला काव्य डेस्क, नई दिल्ली
सभी के दीप सुंदर हैं हमारे क्या तुम्हारे क्या
उजाला हर तरफ़ है इस किनारे उस किनारे क्या
- हफ़ीज़ बनारसी
जो सुनते हैं कि तेरे शहर में दसहरा है
हम अपने घर में दिवाली सजाने लगते हैं
- जमुना प्रसाद राही
रौशनी आधी इधर आधी उधर
इक दिया रक्खा है दीवारों के बीच
- उबैदुल्लाह अलीम
खिड़कियों से झाँकती है रौशनी
बत्तियाँ जलती हैं घर घर रात में
- मोहम्मद अल्वी
Urdu Poetry: शाम होने को है अब घर की तरफ़ लौट चलो