अमर उजाला काव्य डेस्क, नई दिल्ली
क्या तिरे शहर के इंसान हैं पत्थर की तरह
कोई नग़्मा कोई पायल कोई झंकार नहीं
- कामिल बहज़ादी
उस को जुदा हुए भी ज़माना बहुत हुआ
अब क्या कहें ये क़िस्सा पुराना बहुत हुआ
- अहमद फ़राज़
आप दौलत के तराज़ू में दिलों को तौलें
हम मोहब्बत से मोहब्बत का सिला देते हैं
- साहिर लुधियानवी
आप दौलत के तराज़ू में दिलों को तौलें
हम मोहब्बत से मोहब्बत का सिला देते हैं
- साहिर लुधियानवी
Urdu Poetry: जुदाइयों के ज़ख़्म दर्द-ए-ज़िंदगी ने भर दिए