अमर उजाला काव्य डेस्क, नई दिल्ली
मुस्तक़िल बोलता ही रहता हूँ
कितना ख़ामोश हूँ मैं अंदर से
- जौन एलिया
आता था जिस को देख के तस्वीर का ख़याल
अब तो वो कील भी मिरी दीवार में नहीं
- ग़ुलाम मुर्तज़ा राही
वो कोई दोस्त था अच्छे दिनों का
जो पिछली रात से याद आ रहा है
- नासिर काज़मी
सदा ऐश दौराँ दिखाता नहीं
गया वक़्त फिर हाथ आता नहीं
- मीर हसन
Urdu Poetry: उम्मीद बाँधिए न बड़े आदमी के साथ