अमर उजाला, काव्य डेस्क, नई दिल्ली
मोहब्बत में नहीं है फ़र्क़ जीने और मरने का
उसी को देख कर जीते हैं जिस काफ़िर पे दम निकले
- मिर्ज़ा ग़ालिब
वो तो ख़ुश-बू है हवाओं में बिखर जाएगा
मसअला फूल का है फूल किधर जाएगा
- परवीन शाकिर
फ़रिश्ते से बढ़ कर है इंसान बनना
मगर इस में लगती है मेहनत ज़ियादा
- अल्ताफ़ हुसैन हाली
नफ़रत के ख़ज़ाने में तो कुछ भी नहीं बाक़ी
थोड़ा सा गुज़ारे के लिए प्यार बचाएँ
- इरफ़ान सिद्दीक़ी
Urdu Poetry: ख़्वाब होते हैं देखने के लिए, उन में जा कर मगर रहा न करो