अमर उजाला काव्य डेस्क, नई दिल्ली
अब तो ख़ुशी का ग़म है न ग़म की ख़ुशी मुझे
बे-हिस बना चुकी है बहुत ज़िंदगी मुझे
- शकील बदायूंनी
एक वो हैं कि जिन्हें अपनी ख़ुशी ले डूबी
एक हम हैं कि जिन्हें ग़म ने उभरने न दिया
- आज़ाद गुलाटी
मुझे ख़बर नहीं ग़म क्या है और ख़ुशी क्या है
ये ज़िंदगी की है सूरत तो ज़िंदगी क्या है
- अहसन मारहरवी
घर में क्या आया कि मुझ को
दीवारों ने घेर लिया है
- मोहम्मद अल्वी
Urdu Poetry: शुक्रिया तेरा तिरे आने से रौनक़ तो बढ़ी