Urdu Poetry: ज़िंदगी यूँ हुई बसर तन्हा क़ाफ़िला साथ और सफ़र तन्हा

अमर उजाला काव्य डेस्क, नई दिल्ली 

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ज़िंदगी यूँ हुई बसर तन्हा
क़ाफ़िला साथ और सफ़र तन्हा
- गुलज़ार  

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सदा ऐश दौराँ दिखाता नहीं
गया वक़्त फिर हाथ आता नहीं
- मीर हसन 

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हज़रत-ए-दाग़ जहाँ बैठ गए बैठ गए
और होंगे तिरी महफ़िल से उभरने वाले
- दाग़ देहलवी

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क़ुर्बतें लाख ख़ूब-सूरत हों
दूरियों में भी दिलकशी है अभी
- अहमद फ़राज़ 

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Urdu Poetry: मुझ को अख़बार सी लगती हैं तुम्हारी बातें

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