अमर उजाला काव्य डेस्क, नई दिल्ली
वाक़िफ़ कहाँ ज़माना हमारी उड़ान से
वो और थे जो हार गए आसमान से
- फ़हीम जोगापुरी
ये कह के दिल ने मिरे हौसले बढ़ाए हैं
ग़मों की धूप के आगे ख़ुशी के साए हैं
- माहिर-उल क़ादरी
जज़्बात भी हिन्दू होते हैं चाहत भी मुसलमाँ होती है
दुनिया का इशारा था लेकिन समझा न इशारा, दिल ही तो है
- साहिर लुधियानवी
नज़रों से नापता है समुंदर की वुसअतें
साहिल पे इक शख़्स अकेला खड़ा हुआ
- मोहम्मद अल्वी
Urdu Poetry: पत्थर मुझे कहता है मिरा चाहने वाला