Urdu Poetry: इस क़दर आप के बदले हुए तेवर हैं कि मैं

अमर उजाला काव्य डेस्क, नई दिल्ली  

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इस क़दर आप के बदले हुए तेवर हैं कि मैं
अपनी ही चीज़ उठाते हुए डर जाता हूँ
- अहमद कमाल परवाज़ी 

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मैं बहुत ख़ुश था कड़ी धूप के सन्नाटे में
क्यूँ तिरी याद का बादल मिरे सर पर आया
- अहमद मुश्ताक़

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तिरे आने का दिन है तेरे रस्ते में बिछाने को
चमकती धूप में साए इकट्ठे कर रहा हूँ मैं
- अहमद मुश्ताक़

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कौन सी बात है तुम में ऐसी
इतने अच्छे क्यूँ लगते हो
- मोहसिन नक़वी

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Urdu Poetry: आदमी हूँ सो बहुत ख़्वाब हैं मेरे अंदर

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