Urdu Poetry: ग़ज़ल का शेर तो होता है बस किसी के लिए

अमर उजाला काव्य डेस्क, नई दिल्ली 

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ग़ज़ल का शेर तो होता है बस किसी के लिए
मगर सितम है कि सब को सुनाना पड़ता है
- अज़हर इनायती  

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कहीं कहीं से कुछ मिसरे एक-आध ग़ज़ल कुछ शेर
इस पूँजी पर कितना शोर मचा सकता था मैं
- इफ़्तिख़ार आरिफ़

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जाग उठे सन्नाटा ऐसा राग अलाप
साथ न दे आवाज़ तो फिर संगीत सुना
- वक़ार ताहिरी

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जब आ जाती है दुनिया घूम फिर कर अपने मरकज़ पर
तो वापस लौट कर गुज़रे ज़माने क्यूँ नहीं आते
- इबरत मछलीशहरी

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