अमर उजाला काव्य डेस्क, नई दिल्ली
आदमी का आदमी हर हाल में हमदर्द हो
इक तवज्जोह चाहिए इंसाँ को इंसाँ की तरफ़
- हफ़ीज़ जौनपुरी
अपने होने का कुछ एहसास न होने से हुआ
ख़ुद से मिलना मिरा इक शख़्स के खोने से हुआ
- मुसव्विर सब्ज़वारी
औरों की बुराई को न देखूँ वो नज़र दे
हाँ अपनी बुराई को परखने का हुनर दे
- खलील तनवीर
रंग आँखों के लिए बू है दिमाग़ों के लिए
फूल को हाथ लगाने की ज़रूरत क्या है
- हफ़ीज़ मेरठी
Urdu Poetry: चले आओ जहाँ तक रौशनी मा'लूम होती है